Monday, 11 April 2016

प्रत्येक कार्य के केंद्र भगवान

जीवन विवेचन :~
यह बात समझने में जितना समय लगे ,
जितनी शक्ति लगानी पड़े ,
कि प्रत्येक कार्य के केंद्र में हमारा ,
अपना परमात्मा है ।
उसी के नाते कार्य कर रहा हूँ ,
बाद में अनुभव होने लगेगा कि ,
कार्य स्वत : हो रहा है ,
हम निमित्त मात्र भी नहीं है ।
और सचमुच इस संसार मे
मनुष्य की सजातीय ,
तो किसी से नहीं है ,
हो ही नहीं सकती ।
अपना है ,
अगर कोई तो ,
वही परमात्मा है ।
उसको अभी तक ,
हमने देखा नहीं है,
जाना नहीं है ।
लेकिन वह विद्यमान है ,
और उसकी विद्यममानता का प्रभाव है ।
(मानव सेवा संघ वृंदावन)

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