धरा (भूमि) में सभी तत्व और रस विद्यमान है ।
बीज की प्रकृति अनुरूप वह उसमें उन्हीं रस का सञ्चार करती है ।
आप को रसीला और निम्बू को खट्टा और मिर्च को तीखा पन यह भूमि ही देती है । बिन भूमि (प्रकृति) के संयोग बीज स्वयं कुछ नहीँ कर सकता ।
ऐसा ही मधुमक्खी भी विषैल और कड़वे यहाँ तक प्याज जैसे पौधे से भी बिन किसी पौधे के स्वरूप को बिगाड़े अपने अनुकूल रस को लें लेती है , और किसी भी पौधे के पुष्प से वह अनुपम मिठास निकाल शहद ही बनाती है ।
जीव जब उसी पुष्प से रस लेना चाहता है तब वह उसे तोड़ता है , उबलता है , पिस कर पुष्प का तो अंत कर डालता है , फिर इत्र बनता है । यह केवल कुछ समय महक देता है । इसी पुष्प को बिन कष्ट दिए शहद बनता । और वह खाने योग्य होता , बलात् उसी पुष्प का इत्र कड़वा होता है । उसमें ओषधीय गुण नहीँ होते ।
प्रकृति स्व में पूर्ण है , यह विनाश से उत्थान तक सब देगी , आपकी वांछा (चाह) क्या है उसी अनुरूप -- सत्यजीत तृषित ।।।
No comments:
Post a Comment