पुरानी कथा है कि
परमात्मा ने जब
प्रकृति बनाई,
सब बनाया और फिर
आदमी को बनाया,
तो आदमी को उसने
मिट्टी से बनाया
जब आदमी बन गया तो
परमात्मा ने
सारे देवताओं को
इकट्ठा करके कहा कि देखो,
मेरी श्रेष्ठतम कृति यह मनुष्य है
इससे ऊपर मैंने
कुछ भी नहीं बनाया
यह मेरी प्रकृति के
सारे विस्तार में सबसे श्रेष्ठ,
सबसे गरिमाशाली
लेकिन एक संदेहवादी देवता ने कहा,
यह तो ठीक है,
लेकिन मिट्टी से क्यों बनाया?
निकृष्टतम चीज से बनाई
श्रेष्ठतम चीज,
यह कुछ समझ में नहीं आती
अरे, सोने से बनाते!
कम से कम चांदी से बनाते।
न सही चांदी,
लोहे से बना देते।
मिट्टी!
कुछ और न मिला?
निकृष्टतम से
श्रेष्ठतम को बनाया
तो परमात्मा हंसने लगा
उसने कहा,
जिसे श्रेष्ठतम बनना हो
उसे निकृष्टतम से
यात्रा करनी होती है
जिसे स्वर्ग जाना हो
उसे नर्क में पैर जमाने पड़ते
जिसे ऊपर उठना हो उसे
निम्नतम को छूना पड़ता
और फिर परमात्मा ने कहा,
तुमने कभी सोने में से
किसी चीज को उगते देखा?
चांदी में से कोई चीज उगते देखी?
बो दो बीज सोने में,
कभी उगेगा नहीं,
मर जाएगा
मिट्टी भर में उगता है कुछ
और मनुष्य एक संभावना है,
एक आश्वासन है।
अभी मनुष्य को होना है,
अभी हो नहीं गया
हो सकता है।
होने की सब व्यवस्था कर दी है
लेकिन होना पड़ेगा
इसलिए मिट्टी से बनाया है,
क्योंकि मिट्टी में ही
बीज फूटता है,
अंकुर निकलते हैं,
वृक्ष पैदा होते,
फूल लगते,
फल लगते,
सुगंध फैलती
महोत्सव घटित होता है
मिट्टी में ही संभावना है
सोने की कोई संभावना नहीं
सोना तो मुर्दा है,
चांदी तो मुर्दा है
इसीलिए तो मरे—मरे लोग
सोने—चांदी को पूजते हैं
जिंदा लोग मिट्टी को पूजते हैं।
जितना मरा आदमी उतना ही
सोने का पूजक
जितना जिंदा आदमी उतना
उसका मिट्टी से मोह,
मिट्टी से लगाव,
मिट्टी से प्रेम
मिट्टी जीवन है
ठीक कहा ईश्वर ने कि
बीज मिट्टी में फेंक दो तो
खिलता, फैलता, बड़ा होता
मनुष्य एक संभावना है
मनुष्य यात्रा है,
अंत नहीं।
अभी मनुष्य को होना है,
अभी मनुष्य हुआ नहीं
सारी क्षमता पड़ी है
छिपी अचेतन में;
प्रकट होना है,
अभिव्यक्त होना है
गीत तुम लेकर आए हो,
अभी गाया नहीं
तुम्हारी वीणा तो है तुम्हारे पास,
लेकिन तुम्हारी अंगुलियों ने
अभी छुआ नहीं।
अष्टावक्र: महागीता~
(भाग--5)~
प्रवचन--14~
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