Thursday, 28 April 2016

प्रविष्ठ: कर्णरंध्रेण स्वानां भावसरोरुहम

श्रीमद्भागवत द्वितीय स्कन्द अध्याय ८ राजा परीक्षित द्वारा पूछे गये प्रशन  श्लोक क्रमांक ।५।

प्रविष्ठ: कर्णरंध्रेण स्वानां भावसरोरुहम
धुनोति शमलं कृष्ण : सलिलस्य यथा शरत्




अनुवाद श्रीलशुकदेव गोस्वामी कहते हैं हे राजा परीक्षित परमात्मा रुप भगवान श्रीकृष्ण का शब्दावतार अर्थात  श्रीमद्भागवत स्वरूप सिद्ध भक्त के हृदय में प्रवेश करता है । उसके भावत्मक सम्बन्ध रूपि कमल पुष्प पर आसीन हो जाता  है और इस प्रकार काम क्रोध तथा लोभ जैसी भौतिक संगति क़ी धुल को धो डालता  है इस प्रकार यह गंदले जल के तालाबों में शरद ऋतु की वर्षा के सामान कार्य करता है ।

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