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पंडित श्री गयाप्रसाद जी के
सार वचन उपदेश
6⃣ श्रद्धा
<> काहू की आलोचना नहीं करैं।
काहू कौ अनिष्ट नहीं चाहैं।
<> स्त्री जाति सों बचते रहैं।
द्रव्य कौ संपर्क नहीं राखें।
<> "सबहिं मान आपु अमानी
भूलि न देहि कुमारग पाऊ
<> सबके प्रिय हितकारी दुख सुख सरिस प्रसंसा
आरी आदि आदिक
<> वेद पुरान,उपनिषद्,शास्त्र तथा सन्तन की वाणी
आदिक जो सद् गुण बतावैं हैं वास्तव में ये ही
सदाचार हैं।
<> साधक जैसे-जैसे इन सदाचारन कूँ अपने में भारतौ
जाय है वैसे ही वैसे माया के प्रपञ्ज सों ऊपर उठ कें
उत्थान के मार्ग में प्रवेश पातौ जाय है।
<> परम कर्तव्य तथा परम धर्म यही है कि या
सर्वोत्तम मानव जीवन कूँ पायकें सदैव सर्वोत्तम कर्म
ही करें।
<> संसार मार्ग में बड़ी सावधानी सों चलें।
<> सत् पुरषन् कौ संग
<> सद् ग्रन्थन कौ आलोडन
<> सद् विचार एवं सतत् सत् कर्म।
💎प्रस्तुति 📖 श्री दुबे
📙संपादन सानिध्य
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
Thursday, 21 April 2016
गयाप्रसाद जी वचन 10 , श्रद्धा
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