Tuesday, 5 April 2016

कृष्णम् वन्दे जगतगुरुम्

हरे कृष्ण
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भगवान सबके गुरु है”

भगवान की यह एक विलक्षण उदारता, दयालुता है कि जो उनको नहीँ मानता,उनका खण्डन करता है अर्थात नास्तिक है, उसके भीतर भी यदि तत्त्व को, अपने स्वरुप को जानने की तीव्र जिज्ञासा हो जाय तो उसको भी भगवत्कृपा से ज्ञान मिल जाता है। जिससे प्रकाश मिले, ज्ञान मिले, सही मार्ग दीख जाय, अपना कर्तव्य दिख जाय, अपना ध्येय दीख जाय, वह गुरु-तत्त्व है। वह गुरु-तत्त्व सबके भीतर विराजमान है। वह गुरु-तत्त्व जिस व्यक्ति, शास्त्र आदि से प्रकट होता है, वह गुरु कहलाता है; परंतु मूल मेँ भगवान ही सबके गुरु हैँ।

भगवान ने गीता मेँ कहा है की “मैं ही सब प्रकार से देवताओँ और महर्षियोँ का आदि अर्थात् उनका उत्पादक, संरक्षक, शिक्षक हूँ '- “अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः” (गीता 10.2)।

अर्जुन ने भी विराटरुप भगवान की स्तुति करते हुए कहा है कि “भगवन् ! आप ही सबके गुरु हैँ”- ‘गरीयसे’ (गीता 11.37); ‘गुरुर्गरीयान्’ (गीता 11.43)। अतः साधक को गुरु की खोज करने की आवश्यकता नहीँ है। उसे तो “कृष्णं वंदे जगद्गुरुम्” के अनुसार भगवान् श्रीकृष्ण को ही गुरु और उनकी वाणी गीता को उनका मंत्र, उपदेश मानकर उनके आज्ञानुसार साधन मेँ लग जाना चाहिए।

यदि साधक को लौकिक दृष्टि से गुरु की आवश्यकता पड़ेगी तो वे जगद्गुरु अपने-आप गुरु से मिला देँगे; क्योँकि वे भक्तोँ का योगक्षेम वहन करनेवाले हैँ- 'योगक्षेमं वहाम्यहम्' (गीता 9.22)।...

मेरे से कोई पूछता है तो मैँ कहता हूँ कि भगवान श्रीकृष्ण को गुरु मान लो -

'कृष्णं वंदे जगद्गुरुम्।'
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भगवान जगत के गुरु हैँ और जगत मेँ आप हो ही। उनका मंत्र है- 'भगवद्गीता'।

भगवद्गीता का मनन करो, कल्याण हो जायगा। संदेह हो तो करके देख लो कि कल्याण होता है या नहीँ होता। भगवान के रहते हुए आप गुरु के लिए क्योँ भटकते हो?.... भाई कहते हैँ कि तुम घोषणा कर दो, सबको कह दो, तो माताओ ! भाईयो ! आप सभी से मेरा कहना है कि अगर गुरु बनाना हो तो कृष्ण को गुरु मान लो। वे संपूर्ण जगत के गुरु हैँ -

'कृष्णं वंदे जगद्गुरुम्।'
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आप जगत् से बाहर नहीँ हो।

गुरुजी का मंत्र है- 'गीता'।

गीताजी का पाठ करो, मनन करो। गीताजी को याद करो। उसके अनुसार अपना जीवन बनाओ। उद्धार हो जायगा !

जितनी अधिक लगन होगी, उतनी जल्दी उद्धार होगा। जितनी ढिलाई होगी, उतनी देरी लगेगी। उद्धार होगा ही। लाभ ही होगा, नुकसान नहीँ होगा। अगर किसी 'ऐरे गैरे नत्थू खैरे' को गुरु बनाओगे तो वह क्या निहाल करेगा! इसलिए आप निःसंकोच होकर भगवान के चरणोँ के आश्रित हो जाओ। डरो मत, निधड़क रहो। जो बनावटी गुरु होते हैँ, उनके एजेंट ही कहा करते है कि 'तुम इनके चेले बन जाओ।'

रावण भिक्षा लेने गया तो उसने सीताजी से कहा कि जो कार (लकीर) है, उसके भीतर हम नहीँ आते- 'नहीँ आते कार के भीतर, निराकार जपते हरिहर।' हम निराकार को जपते हैँ, आकारके भीतर नहीँ आते, लकीर से बाहर आकर भिक्षा दो। सीताजी बाहर आयीँ तो उनको उठाकर चल दिया ! ये हैँ गुरुजी महाराज ! इनसे सावधान रहना।

आज से ही याद कर लो कि 'कृष्णं वंदे जगद्गुरुम्

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हरे कृष्णः हरे कृष्ण: कृष्ण: कृष्ण: हरे हरे।।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
🍁🌺🍁🌸🍁🌺🍁🌸🍁omdasanudas 💐

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