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पंडित श्रीगयाप्रसादजी के
उपदेश वचन
2⃣ 🌷 श्रद्धा 🌷
<> जो शास्त्रन में लिखौ है तथा जो सन्तजन कहें हैं
वाकूँ बिना सोचे विचारे ज्यों की त्यों मान लेनौ
ही श्रद्धा है।
<>सीधे शब्दन में यों समझौ कि अपनी बुद्धि सो
काम नहीं लेनौ ।
<> श्रद्धा ही तौ अध्यात्म कौ मूल है ।
सात्विकी श्रद्धा में कछु और हू गहराई है ।
<>साधारण श्रद्धा में यह लोभ तौ हू रहै है कि
यदि हम इनकी आज्ञा पै चलैंगे ।
<> तौ हमारी लोक परलोक सुधरैगी या में स्वार्थ
की गन्ध है
<> किन्तु सात्विकी श्रद्धा में यह हू नहीं रहै है।
वहाँ तौ केवल इतने ही भाव रहै है कि हमें न लोक बनवे
सों प्रयोजन न परलोक बनवे की आशा।
<> हम तौ अपनौ परम् सोभाग्य याही में मानें है
कि हमारे ताई इनकी आज्ञा भयी।
<> कलयुग में श्रद्धा ही दुर्लभ है ताहू पै सात्विकी
श्रद्धा यदि उपज परै तौ श्री भगवान् की अपार
कृपा समझ लैनी चाहिये।
<> तथापि बिना सात्विकी श्रद्धा भये जीव कौ
परम कल्याण अलभ्य ही है।
<> श्रद्धा में सहायक
<> श्रद्धालु जनन कौ सम्पर्क
<> श्रद्धालु जनन में श्रद्धा करनौ
<> इनकूँ अपने सों बहुत अधिक माननों
<> इनमें भाव बढ़ानौ
<> इनकी क्रियान पै बड़े गौर सों ध्यान देनौ
<> इनकूँ अपनौ पथ प्रदर्शक माननौ आदि-आदि।
💎 प्रस्तुति 📖 श्री दुबे
📙संपादन सानिध्य
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
पूज्य बाबा
पंडित श्री गया प्रासद जी के
📘सार वचन उपदेश
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🍒१.ईश्वरीय सृष्टि की अनुपम देन है-संत,वे ईश्वर के समान समस्त जगत् के हितैषी एवं पावनकारी प्रभावयुक्त हैं।
🍒२.श्री भगवत् साक्षात्कार होय-महापुरुष की प्राप्ति सों,बिना महापुरुष की कृपा के यह पथ हाथ नहीं आवै है।
🍒3.जो परमात्मा सों मिलवे के साधन मार्ग कौ अंगुली निर्देश करै हैं वे हैं सन्त किन्तु जो अनुगत शिष्य कूँ शिशुवत्
🍒४.अंगुली पकर कें अपने साथ-साथ लै जायकें परमात्मा सों मिलाय दें वे हैं सद्गुरु।
🍒५.जो शिष्य कूँ संसार सों सर्वथा छुड़ाय कें शिष्य के हाथ कूँ श्रीप्रभु के हाथ में सोंप देय वही है सद्गुरु।
🍒६.श्रदास्पद हैं श्रीसद्गुरु और प्रेमास्पद हैं श्री भगवान्
🍒७.श्रीसद्गुरु भगवान् की प्राप्ति अत्यन्त दुर्लभ है। जाकूँ प्रियतम अपनानौ चाहैं हैं वाही कूँ ये प्राप्त होय हैं।
☘☘सन्त विसुद मिलहिं परि तेहि
चितवहिं राम कृपा करि जेहि।☘☘
🍓वस्तुतः शिष्य कौ कल्याण करवे के ताईं स्वयं भगवान् ही सद्गुरु रूप में आवें हैं।
☘८.श्री भगवन्नाम जप में पूर्ण रूचि होंनी चाहिये ।
🍓९.श्रीनाम जप कौ इतनो अभ्यास बढ़ावे कि बिना प्रयत्न किये जिहवा सतत श्रीभगवत नाम रटती ही रहे ।
🍒१०.यहाँ तक कि शयन के समय हु नाम जप होयेवे लगे।
🌸११..श्रीविनय पत्रिका कौ यह पद बड़े ही मर्म कौ है-
🍃"राम राम राम जीह
जौ लो तू न जपि है
तौ लो तू कह जाय,
तिहूँ ताप टपि है।"🍃
🌷१२.जिहवा की सफलता श्री नामोउच्चारण में,
श्रवणन की सफलता नाम श्रवण मे तथा
मन के ताई परम आनन्द केवल श्रीनाम के रसामात्र पीवे में ही है।
🍁१३.जो जीभ श्री भगवन्नाम जपै वह कठोर वाक्य न बोलै,अश्लील बात न कहै,
असत्य भाषण न करे।
🌻१४.श्री भगवन्नाम जपिवे वारी जीभ काहू की निन्दा न करै व्यर्थ भाषण न करै परचर्चा न करै स्वाद और विवाद में रस लैवे
🍀१५.वही जिवहा भगवन्नाम में रस नहीं प्राप्त कर सकै है । जिहवा के स्वाद में जाकू रूचि होगी वाके अन्त:करण में भजन कौ रहस्य प्रकट नहीं है सकै ।
▶१६.दो बातन कौ अभ्यास बढावै-
🍒१.निरन्तर श्रीभगवन्नाम जप
🍒२.निरन्तर आपने आचरण कौ सुधार ।
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