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पंडित श्री गयाप्रसाद जी के
सार वचन उपदेश
4⃣ श्रद्धा की महिमा
<> श्रीगीताजी में स्वयं श्रीकृष्ण जीवनधन याकी
महिमा कौ वर्णन कर रहे हैं-या सों अधिक अब कोई
कह ही का सकै है-
<> "श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।"
श्रद्धावान् ज्ञानं लभते
तत्परः (भवति) एवं
संयतेन्द्रियः (च भवति)
<> एक श्रद्धा कौ दृढ़ आश्रय ग्रहण करवे सों स्वतः
ही ज्ञान प्राप्त है जाय है। ज्ञान प्राप्ति के लिये
कोई कठिन प्रयास नहीं करनौ परै है।
<> जो श्री भगवद् प्रेम के इच्छुक हैं इनके लिये कह रहे
हैं-तत्परः वह प्रेम कौ अभिलाषी सर्वतोभाव सों
श्री भगवत् कौ बन जाय है।
<> चाहै ज्ञानी बनै
चाहै प्रेमी बनै किन्तु
दुहुँ कहँ काम क्रोध रिपु नाहि
<> बिना पूर्ण सदाचारी बने
न ज्ञान मिलै न प्रेम मिलै।
<> याही सों श्री प्राणनाथ आज्ञा कर रहे हैं -
संयतेंद्रियः
<> श्रद्धावान् पूर्ण संयमी बनै है।
वाकी कोई इन्द्रिय कुमार्ग में नहीं जाय है
<> यह है गयौ सदाचार
एक श्रद्धा के आश्रय सों
<> ज्ञानी बन सकै है।
प्रेमी बन सकै है।
<> साथ ही सदाचारी बन सकै है।
विचार कै देखौ जाय तौ ये ही महादुस्तर हैं।
तथापि श्रद्धा की महिमा कितनी अपार है
<> कि श्रद्धावान् के लिये ये तीनों ही महादुर्लभ
ज्ञान प्रेम एवं पूर्ण सदाचारी जीवन अनायास ही
प्राप्त है जाय है।
💎 प्रस्तुति 📖 श्री दुबे
📙संपादन सानिध्य
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
Thursday, 21 April 2016
गयाप्रसाद जी के वचन 11 , श्रद्धा की महिमा
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