मन के विघ्न
काम क्रोध आदि सभी मन के धर्म, चक्षु आदि दस इंद्रियाँ और मन की वृत्ति भेद से अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश ये पाँच प्रकार के क्लेश तथा इनके अवान्तर भेद लेकर श्रीवाचस्पति मिश्र ने सांख्यतत्व कौमुदी में 48 कारिकाव्याख्या में 62 प्रकार के मन के विघ्न निरुपित किए हैं। तम 8 प्रकार, मोह 8 प्रकार, महामोह 10 प्रकार, तामिस्र 18 प्रकार और अंधतामिश्र 18 प्रकार- कुल 62 प्रकार के अंतराय। इनका विस्तार से उल्लेख करते हैं।
तमः अव्यक्त, महत् तत्व, अहंकार, रूप, रस, गंध, स्पर्श, शब्द। मोहः अणिमा, लघिमा, प्राप्ति, ईशित्व, वशित्व, प्राकाम्य, कामावशायित्व। महामोहः देवभोग्य पञ्चतन्मात्राएं और मनुष्य लोक की भोग्य पञ्चतन्मात्रायें। तामिस्रः अणिमा आदि आठ ऐश्वर्य और महामोह दस प्रकार। इस प्रकार अंधतामिस्र भी 18 प्रकार के। ये सभी अनतराय आत्मतत्व-प्राप्ति में विघ्न हैं। मनुष्य और देवता विषयभोग कर बार-बार संसार में परिभ्रमण करते हैं। इसलिए इस समष्टि के मूलीभूत अविद्या आदि पञ्चक्लेश आत्मतत्व-प्राप्ति में निदारुण विघ्न हैं, जो केवल आत्मपथप्रदर्शक सद्गुरु की कृपा से ही प्रतिनिवृत्त होते हैं। जितना प्राप्त हुआ - उतना यहाँ दे दिया , किन्हीं के पास विस्तार हो तो दीजियेगा । सत्यजीत तृषित - 89 55 878930 whatsapp -
No comments:
Post a Comment