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पूज्य बाबा
पंडित श्री गयाप्रसाद जी के
📘 सार वचन उपदेश
🍁 7⃣ 💎संयम💎 🍁
<>१ । साधक के द्वारा अपने मन, वाणी एवं शरीर
सों हैवे बारी समस्त चेष्टान कूँ कुमार्ग
(विषयासक्ति) सों रोक कें शास्त्र अथवा सद् गुरु
की आज्ञानुसार भगवत् (अध्यातम्) सम्बन्ध में
निरन्तर लगानौ ही संयम है।
<>२ । प्रत्येक साधक कूँ इन १४ कौ सुधार करनौ परम
कर्तव्य है।
<>१ । हाथ
<>२ । पाँव
<>३ । वाणी
<>४ । मूत्र त्याग की इन्द्रिय
<>५ । मल त्याग की इन्द्रिय
<>ये पाँच कमेंद्रिय हैं
⬇तथा
<>१ । श्रवण
<>२ । नेत्र
<>३ । रसना
<>४ । घ्राणेन्द्रिय (नासिका)
<>५ । त्वचा
<> ये पाँच ज्ञानेन्द्रिय हैं।
⬇तथा
<> अन्तःकरण चतुष्टय
<>१ । मन
<>२ ।बुद्धि
<>३ ।चित्त
<>४ ।अहंकार
<> साधक के लिये यही कर्तव्य है कि इन सबन कूँ
सतत् शुभ कर्मन में ही लगावै । यही संयम है
<> तथाे इनकी सफलता समझै श्री भगवत् सेवा में
लगावे में ही।
💎प्रस्तुति 📖 श्री दुबे
📙संपादन सानिध्य
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
Thursday, 21 April 2016
गयाप्रसाद जी वचन 7 , संयम
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