Wednesday, 30 March 2016

तो हम जटिल हो जाएंगे

!! तो हम जटिल हो जाएंगे !!

एक रात, एक सराय में, एक फकीर आया।
सराय भरी हुई थी, रात बहुत बीत चुकी थी
और उस गांव के दूसरे मकान बंद हो चुके थे
और लोग सो चुके थे।
सराय का मालिक भी सराय को बंद करता था,
तभी वह फकीर वहां पहुंचा और उसने कहा,
कुछ भी हो, कहीं भी हो,
मुझे रात भर टिकने के लिए जगह चाहिए ही।
इस अंधेरी रात में अब मैं कहां खोजूं और कहां जाऊं!
सराय के मालिक ने कहा, ठहरना तो हो सकता है,
लेकिन अकेला कमरा मिलना कठिन है।
एक कमरा है, उसमें एक मेहमान अभी—अभी आकर ठहरा है,
वह जागता होगा,
क्या तुम उसके साथ ही उसके कमरे में सो सकोगे?
वह फकीर राजी हो गया।
एक कमरे में दो मेहमान ठहरा दिए गए।
वह फकीर अपने बिस्तर पर लेट गया,
न तो उसने अपने जूते खोले,
न अपनी टोपी निकाली,
वह सब कपड़े पहने हुए लेट गया।
दूसरा आदमी जो वहां ठहरा हुआ था,
उसे हैरानी भी हुई,
लेकिन अपरिचित आदमी से कुछ कहना ठीक न था,
वह चुप रहा।
लेकिन वह फकीर जो टोपी पहने ही सो गया था,
वह करवटें बदलने लगा और नींद आनी उसे कठिन हो गई।
दूसरे मेहमान के बर्दाश्त के बाहर हो गया
और उसने कहा, महानुभाव,
ऐसे तो रात भर नींद नहीं आएगी, आप करवट बदलते रहेंगे।
कृपा करके जूते उतार दें, कपड़े उतार दें, फिर ठीक से सो जाएं।
थोड़े सरल हो जाएं तो शायद नींद आ भी जाए।
इतने जटिल होकर सोना बहुत मुश्किल है।
उस फकीर ने कहा, मैं भी यही सोचता हूं।
लेकिन अगर मैं कमरे में अकेला होता तो
कपड़े निकाल देता,
तुम्हारे होने की वजह से मैं बहुत मुश्किल में हूं!
उस आदमी ने कहा,
इसमें क्या मुश्किल की बात है?
वह फकीर कहने लगा,
मुश्किल यह है कि अगर मैं कपड़े निकाल कर सो गया,
तो सुबह मेरी नींद खुलेगी,
मैं यह कैसे पहचानूंगा कि मैं कौन हूं?
मैं अपने कपड़ों से ही खुद को पहचानता हूं।
यह कोट मेरे ऊपर है, तो मुझे लगता है कि मैं मैं ही हूं।
यह पगड़ी मेरे सिर पर है,
तो मैं जानता हूं कि मैं मैं ही हूं।
इस पगड़ी, इस कोट को पहने हुए
आईने के सामने खड़ा होता हूं तो
पहचान लेता हूं कि मैं मैं ही हूं।
अगर कमरे में अकेला होता तो
कपड़े निकाल कर सो जाता,
बदलने का कोई डर न था।
लेकिन सुबह मैं उठूं तो मैं कैसे पहचानूंगा कि
मैं कौन हूं और तुम कौन हो?
वह आदमी कहने लगा,
बड़े पागल मालूम होते हो!
तुम जैसा पागल मैंने कभी नहीं देखा!
वह फकीर कहने लगा,
तुम मुझे पागल कहते हो!
मैंने दुनिया में जो भी आदमी देखा,
वह अपने कपड़ों से ही
अपने को पहचानता हुआ देखा है।
अगर मैं पागल हूं तो सभी पागल हैं।
आप भी अपने को कपड़ों के अलावा
और किसी चीज से पहचानते हैं?
कपड़े बहुत तरह के हैं—नाम भी एक कपड़ा है,
जाति भी एक कपड़ा है, धर्म भी एक कपड़ा है।
मैं हिंदू हूं मैं मुसलमान हूं?
मैं जैन हूं— ये भी कपड़े हैं,
ये भी बचपन के बाद पहनाए गए हैं।
मेरा यह नाम है,
मेरा वह नाम है— ये भी कपड़े हैं,
ये भी बचपन के बाद पहनाए गए हैं।
इन्हीं को हम सोचते हैं अपना होना?
तो हम जटिल हो जाएंगे,
तो हम जटिल हो ही जाएंगे।

💞💞

➡जीवन रहस्य–(प्रवचन–12)

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