!!! श्री राधा !!!
आज सोच रहा था --- मेरा कौन है ? कई सफुरणांए हुई ! लोग पूछते थे कि 'आपका स्वास्थ्य कैसा है ? स्वस्थ है न ?'
मन में आया 'स्वस्थ' का क्या अर्थ है; फिर सोचा व्याकरण के अनुसार तो 'स्व' 'स्थ' अर्थात जो स्वमें स्थित हो वह स्वस्थ है !
पुनः सोचने लगा--- मेरा अपना कौन है ? मन से उतर मिला श्री कृष्ण है; और कौन है ? श्री राधा रानी है !
और कौन है ? मन से पुनः उतर मिला--- श्री गौपीजन है; और कौन है? श्री नित्य वृंदावनधाम है !
इन चारों के सिवा और कौन सी वस्तु है, जो आपकी है! वह मरने के बाद भी साथ रहनी चाहिये, पर यहाँ तो धन, पुत्र, स्त्री, पद, गौरव सभी छूट जाएगा ये वस्तुएँ आपकी तो है नहीं!
किंतु इन चारों के देखिए --- श्री कृष्ण कभी नहीं छूटेगें, श्री राधा रानी कभी नहीं छूटेगें, गौपीजन कभी नहीं छूटेगें, श्री वृंदावनधाम कभी नहीं छूटेगा ! यह इसलिए कि नित्य है, नित्य आपके साथ रहते है! इनका कभी विनाश, वियोग होता ही नहीं तथा यह बार बार आपके चित में आते है; ये इनकी कितनी दया हैै!
पर जब आप इनको पराया मानकर छोड़ देते है और पराये को अपना मानकर इनकी जगह याद करने लगते हैं तब फिर ये छिप जाते है ! ये सोचते है अच्छी बात है भाई; तुम हमें ही नहीं चाहते तो क्या करें!
तुम याद करते हो, याद करते ही तुम्हारे मन में आकर उपस्थित हो जाते हैं ! पर हमारे आने के बाद भी फिर तुम हमको तो ढँक देते हो और उसकी जगह स्त्री, पुत्र, धन को बिठा देते हो ! तब बोले हमारा क्या अपराध है !
(प्रेम सत्संग सुधा मालाः श्री राधा बाबा)
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