जिन्हें वसुदेवसर्वम की अवस्था प्राप्त है । उन्हें जीव नहीँ कह सकते । वह तो शिव हो गए है ।
जिन्हें नित्य रस आनन्द ने छु लिया हो वह भी मानव नहीँ , वह तो अब विभूति है । जगत कल्याणार्थ ।
जिन्हें श्री राधा रस तनिक भी भीतर उतरा हो वह अन्यत्र कभी कहीँ नयन से नयन नहीँ मिला सकते , ऐसा करने भर से वह रोये बिन नहीँ रह सकते , वहाँ रोम रोम कृष्ण स्पर्श से रोमांचित हो कर भी जड़ है , चेतन की यही सरलता है कि उसकी प्रतिती जड़ होती है । वह थिर हो जाता है । और जड़ में चेतन की प्रतिती और थिरता का अभाव होता है । प्रति रोम से रस स्पर्श पाकर भी जड़ होना सहज नहीँ , यहाँ जड़ रसराज के सुख से स्वीकार्य है , स्पर्श बाद उन्मादित हो उछलना सहज है , पर स्पर्श सुख का भी समर्पण जो कर सकें वहीँ प्रेममय पथ की पगडंडी पर कभी थे , अब भी दीखते है , पर है नहीँ , अब केवल प्रियतम् रस हेतु प्रतिती है ।
-- सत्यजीत तृषित ।।।
Monday, 28 March 2016
वसुदैव सर्वम् देखना तो शिव ही है भाव सत्यजीत तृषित
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment