Monday, 28 March 2016

सर्वरूप परमात्मा की सुने

क्या आप ने कभी किसी बाल स्वरूप की बात मानी है ,
अगर नहीँ मानी तो परम् तत्वज्ञ , रसमय , विदुषक , सन्त के वचन को कैसे मानेंगे ।
जब सरल स्वरूप में कहीँ बात नकार दी गई , तब दिव्य स्वरूप में कहीँ बात को मानना केवल अभिनय है , सहज स्वीकार्य जहाँ होगा , वहाँ कभी नकारात्मक भाव होगा ही नहीँ । वहाँ प्रकट ही नहीँ , अप्रकट रूप भी ईश्वर ही हो जाएगा ।
व्यक्तिविशेष की बात मानना , इसमें कारण है , कोई लालच है ।
सर्व रूपेण ही स्वीकार्यता होना यह ही निष्कामता की सहज भूमिका है ।
अर्थात् -
मतलब जहाँ सिद्ध हुआ वहाँ परम् लक्ष्य भी लघु हो उठता है ।
जहाँ स्वार्थ का त्याग हो वहाँ लघु तथ्य भी परम् लक्ष्यगामी होगा ही ।
-- सत्यजीत तृषित ।

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