मन बड़ा ही चंचल है । कभी यह कुछ स्वीकार करता है और तुरन्त उसी वस्तु को अस्वीकार कर देता है । इन्द्रिय तृप्ति के पाँच विषयोँ - रुप , रस, गंध , शब्द , स्पर्श - के सम्पर्क से ही मन स्वीकार अथवा अस्वीकार करता रहता है । चिन्तनशील विधि द्वारा मन इन्द्रिय तृप्ति के विषयो के सम्पर्क मेँ आता है और जीव विशेष प्रकार का शरीर प्राप्त करता है । इस प्रकार शरीर भौतिक प्रकृति के नियमोँ द्वारा प्रदत्त एक उपहार है जीव शरीर ग्रहण करके अपने शरीर की रचनानुसार इस जगत मेँ सुख या दुःख भोगने के लिए फिर से आता है । किसी विशेष शरीर के बिना हम विगत जीवन से प्राप्त मानसिक दशानुसार सुख या दुःख का अनुभव नहीँ कर सकते । हमेँ विशेष प्रकार का जो शरीर मिलता है .वह मृत्यु के समय हमारी मानसिक दशानुसार ही मिलता है ।
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