Sunday, 13 March 2016

सत्संग सार कुछ बिंदु

सत्संग की कुछ सार बातें -1- १. मनुष्य-जीवन के समय को अमूल्य और क्षणिक समझकर उत्तम-से-उत्तम काम में व्यतीत करना चाहिये। एक क्षण भी व्यर्थ नहीं बिताना चाहिये ।   २. यदि किसी कारणवश कभी कोई क्षण भगवत-चिंतन के बिना बीत जाय तो उसके लिए पुत्रशोक से भी बढ़कर घोर पश्चाताप करना चाहिये, जिससे फिर कभी ऐसी भूल न हो ।   ३. जिसका समय व्यर्थ व्यय होता है, उसने समय का मूल्य समझा ही नहीं ।   ४. मनुष्य को कभी निकम्मा नहीं रहना चाहिये; अपितु सदा-सर्वदा उत्तम-से-उत्तम कार्य करते रहना चाहिये । ५ . मन से भगवान् का चिन्तन, वाणी से भगवान् के नाम का जप, सबको नारायण समझकर शरीर से जगज्जनार्दन की नि:स्वार्थ सेवा यही उत्तम-से-उत्तम कर्म है । ६. बोलने के समय सत्य, प्रिय, मिट और हितभरे शास्त्रानुकूल वचन बोलने चाहिये ।   ७. अपने दोषों को सुनकर चित्त में प्रसन्नता होनी चाहिये । ८ . यदि कोई हमारा दोष सिद्ध करे तो उसके लिये जहाँतक हो, सफाई नहीं देनी चाहिये; क्योंकि सफाई देने से दोषों की जड़ जमती है तथा दोष बतलानेवाले के चित्त में भविष्य के लिये रूकावट होती है । इससे हम निर्दोष नहीं हो पाते । ९. यदि हम निर्दोष हैं तो दोष सुनकर हमें मौन हो जाना चहिये, इससे हमारी कोई हानि नहीं है और यदि सदोष हैं तो अपना सुधार करना चहिये । १०. दोष बतलानेवाले का गुरुतुल्य आदर करना चाहिये, जिससे भविष्य में उसे दोष बतालाने में उत्साह हो । जय श्री कृष्ण 'सत...

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