सन्तवाणी
श्रद्धेय स्वामीजी श्रीशरणानंदजी महाराज
प्रश्न‒शरीरका उपयोग क्या हो सकता है ?
स्वामीजी‒संसारके साथ हैं तो शरीरका उपयोग संसारके अहितमें न हो । वाणीसे कटु मत बोलो‒सेवा हो गई । कटु नहीं बोलोगे तो मधुर बोलोगे । अहितकर मत बोलो‒क्या होगा ? हितकर बोलोगे । आपके शरीरका उपयोग दूसरेके अहितमें न हो । अहितमें कब होता है ? जब अपने सुखमें होता है । अपने लिये शरीर नहीं है । अर्थ यह है कि शरीरका उपयोग अपने सुख-भोगमें नहीं करना है ।
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