Monday, 28 March 2016

पञ्च कोष

।आध्यात्मिक जगत परिक्रमा।
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जीव पंच आवरणो को धारण
करता है; वे ही कोष कहलाते हैं।उन्ही को मा गायत्री के पाच मुख कहते हैं; अन्नमय; प्राण मय; मनोमय; विग्यान मय; एवं आनंद मय कोष कहते है।जो साधक इन पांच कोषो को भेदता है वह भव सागर को पार कर बन्धनों से छूट जाता है।

1:-अन्न मय कोष:- मनुष्य का शरीर अन्न से वना है।आसन उपवास तत्व शुद्धि और तपस्या से अन्नमयकोष  की शुद्धि होती है।

2:-प्राणमयकोष:-पाचमहाप्राण और पाच लघु प्राण इन दस से उत्तम प्राणमय कोष बनता है।प्राण शक्ति से मनुष्य का ऐश्वर्य; पुरुषार्थ ;तेज ;ओज; यश निश्चय ही बढते है।बन्ध मुद्रा और प्राणायाम द्वारा यत्नशील
साधको को यह प्राण मय कोष सिद्ध होता है।

3:-मनोमय कोष:- मनुष्यो के चेतना का केंद्र मन माना गया है।उसके बस मे होने से महान अन्तःशक्ति पैदा होती है।ध्यान; त्राटक  ;तन्मात्रा और जप इनकी साधना करने पर मनोमय कोष अत्यंत उज्ज्वल हो जाता है।

4:-विग्यान मयकोष:-संसार का और अपना ठीक ठीक और पूरा पूरा ग्यान होने को ही विग्यान वेत्ताओ ने विग्यान कहा है।सोऽम की साधना  आत्मानुभूति ; स्वरों का संयम और ग्रन्थि भेद इनकी सिद्धि से यत्नशील की आत्मा मे विग्यान मयकोष प्रबुद्ध होता है।

5:-आनंद मयकोष:-आनंद आवरण की उन्नति से अत्यंत शान्ति को देने वाली तुरियावस्था साधक को संसार में प्राप्त होते हैं।नाद; विन्दु और कला की पूर्ण साधना से साधक मे आनन्द मयकोष जाग्रत होता है।

माँ गायत्री के दश भुजाएं , पाच शूल , पाच महाशूलो की और संकेत करती है।
दोषयुक्त दृष्टि; परावलंम्वन; भय; क्षुद्रता; असावधानी; स्वार्थपरता ;अविवेक ;क्रोध; आलस्य; तृष्णा ये दुखदायी दस शूल है।

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