अगर आप मनुष्य है तो आप कल्याण से दूर जा सकते है । निकट नहीँ आ सकते ।
मनुष्य होना ही कल्याण है । मनुष्यता को गवां कर सारा जीवन पूछना , मेरा कल्याण कैसे हो ? यह व्यर्थ है । कल्याण होना ना होता तो मानव होना ही ना होता । कल्याण तो हुआ पर स्वयं को उससे दूर कर लिया है । अब अपने उद्धार और कल्याण को पुनः को प्राप्त करना हो तो तब हमें प्राप्त किसी भी वस्तु , साधन आदि को निज ना मान सेवा हेतु ही व्यय करना चाहिये । कल्याण पुनः प्रगट हो सकेगा ।
कल्याण भगवान का ही एक नाम और भाव है । मेरा कल्याण कैसे हो ? कि अपेक्षा बार बार चिंतन हो मेरे भगवान कैसे हो ?
उद्धार और कल्याण की चाह की आवश्यकता नहीँ , यह आपकी अपनी सीमा में नहीँ है , यह भगवत् विधान से है , कल्याण ना होता , उद्धार का वह ना सोचते तो इस बार भी मानव रूप ना होता ।
वहाँ कल्याण सोचा गया अतः यह रूप प्राप्त हुआ । अपनी बुद्धि से कल्याण के सागर से हम सूखे थल पर ही जा खड़े होगें ।
कल्याण सभी को समान प्राप्त है , जिन्होंने उसे जागृत किया वह अब परम् की चाह से जी रहे है ,
किसी की रज़ा में जो राजी है उसे कल्याण की चिंता नहीँ , वह कल्याण की अग्रिम अवस्था को सजीव जी रहे है ।
क्या आपने अपना कल्याण खो दिया है ?
और हाँ जिनका कल्याण हो चूका हो उनका स्पर्श आपको जागृत कर देता है , कल्याण होता नहीँ , कल्याण हो रहा है , अनुभव सहज जब है , जब संग वैसा हो । -- सत्यजीत तृषित
Monday, 28 March 2016
कल्याण भाव तृषित
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