हम अति दुःखी है और रसविहीन है
यह कहे उनका नहीँ ,
वहाँ संग करना है जो कहे हम नित्य आनन्द है , जो सिद्ध करें हमने दुःख नहीँ देखा ।
हम दुःखी है यह तो हम भी जानते है ।
हम नित्य आनन्द है यह स्थिति छिपी है इस स्थिति को बिना अहम् के धागे में पिरोये रसमयी पुष्प माला जो बना दे वह संग यथेष्ट है ।
गौर करने पर आप पाओगें सभी यही सिद्ध कर रहे है - हम दुःखी है । श्रद्धा से नमन वहाँ कीजिये जो आपके सर्वकाल के दुःख को केवल स्वांग या छाया सिद्ध कर दें । - सत्यजीत तृषित ।
अगर किसी ने आपको दुःख मय स्थिति में , संसार के लिये विलाप करते हुए भी , रोते-बिलखते , तन-मन के रोग की स्थिति में भी "रसमय" "आनन्दित" देख लिया हो , तब उन्हें पकड़ लीजिये, वह आपके वास्तविक स्वरूप को देख रहे है , किसी समय आपको भी अपनी दृष्टि से यह दिखा सके तब आप नित्य आनन्द से बाहर अनुभूत् नहीँ कर सकेंगे , तब दर्द भी आनन्द वर्धक ही प्रतित होना है । - सत्यजीत तृषित
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