"मैं और मेरे प्रभु"
विश्वास पथ की दीक्षा
प्रभु मेरे हैं-
प्रभु से मेरा नित्य आत्मीय सम्बन्ध है।
प्रभु मेरे अपने हैं-सो मुझे प्यारे लगते हैं। प्यारे
की नित्य स्मृति स्वाभाविक है। प्रभु स्मृति
और प्रभु प्रेम ही मेरा जीवन
है।
मैं प्रभु का हूँ-
प्रभु सर्वसमर्थ, करूणावान और शरणागत् वत्सल हैं।
मुझे प्रभु अपना करके जानते और मानते हैं। सो मेरे
जीवन में भय और चिन्ता का कोई स्थान
ही नहीं। मैं निर्भय निश्चिन्त
हूँ।
प्रभु में ही मेरा नित्य निवास है-
केवल प्रभु ही हैं, उनके अतिरिक्त कोई और
नहीं, कछु और नहीं। प्रभु
आदिअन्त रहित हैं। वे सदैव हैं, सर्वत्र हैं। सो मैं प्रभु
में हूँ और प्रभु मुझमें हैं। प्रभु सच्चिदानन्द स्वरूप हैं।
सर्वत्र सदैव आनन्द ही आनन्द है। सो मैं
नित्य आनन्द में हूँ।
-ब्रह्मलीन संत परमपूज्य
स्वामी शरणानन्द जी महाराज
जीवन विवेचन :--
मानव जीवन का ईश्वर विश्वास बड़ा विलक्षण तत्व है ।
इसके द्वारा मानव में ,
बहुत बड़ा परिवर्तन होता है ,
बड़ा चमत्कार आता है ,
जीवन में ।
जिस दिन से , प्रभु को अपना माना , अनाथ पन सदा के लिए मिट गया । जिस दिन से उनकी महिमा स्वीकार की ,
सब तरह का भय मिट गया ।
जिस दिन से
उनके हो कर रहना पसंद किया ,
तो अहं का अभिमान चला गया ।
प्रभु हैं ,
मेरे हैं ,
और मैं उनका हूं ,
और उन्हीं की प्रसन्नता के लिए यह जीवन है ।
तो वह ,
जैसे रखें ,
वैसे रहो ,
जो कराएं सो करो ।
(मानव सेवा संघ , वृन्दावन )
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