Tuesday, 15 March 2016

प्रतिकूलता पर विश्व के विद्वानों के विचार

☀      प्रभु प्रेमी संघ     🌏
   15 मार्च, 2016 (मंगलवार)
पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
           (प्रवचन सरित)
          ।।  श्री: कृपा  ।।
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    🌴   पूज्य सद्गुरुदेवजी कहते हैं - सृष्टि निर्मिति और विस्तार का मूल है- संकल्प | अतः इहलोक और परलोक की अनुकूलताएं मनुष्य के संकल्प पर निर्भर करती हैं...! प्रकृति हमारी जननी है, जो हमें सदैव ऐसी परिस्थिती प्रदान करती है, जिसमें हम सभी का विकास होता है। जीवन में धूप-छाँव की स्थिती हमेशा रहती है। सुख-दुख एवं रात-दिन का चक्र अपनी गति से चलता रहता है। ये आवश्यक नही है कि, हर पल हमारी सोच के अनुरूप ही हो। प्रतिकूलताएँ तो जीवन प्रवाह का एक सहज स्वाभाविक क्रम है। सम्पूर्ण विकास के लिए दोनो का महत्व है। दिन का महत्व रात्री के समय ही समझ में आता है। ये संभव नही है कि सदैव अनुकूलता बनी रहे प्रतिकूलता न आए। पूज्य सद्गुरुदेव जी का ये कथन है -  कथा श्रवण सत्संग व स्वाध्याय से प्रतिकूल परिस्थितियों में भी हमें थम कर खड़े रहने की अपार शक्ति व सामर्थ प्राप्त होता है...।

    🌴   अनुकूल परिस्थिती में सफलता मिलना कोई आश्चर्य की बात नही है। परन्तु विपरीत परिस्थिती में सफलता अर्जित करना, किचङ में कमल के समान है। जो अभावों में भी हँसते हुए आशावादी सोच के साथ लक्ष्य तक बढते हैं, उनका रास्ता प्रतिकूलताओं की प्रचंड आधियाँ भी नही रोक पाती। अनुकूलताएं और प्रतिकूलताएँ तो एक दूसरे की पर्याय हैं। इसमें स्वंय को (शान्त) रखते हुए आगे बढना ही जीवन का सबसे बङा सच है।

    🌴   रविन्द्र नाथ टैगोर ने कहा है कि, “हम ये प्राथना न करें कि हमारे ऊपर खतरे न आएं, बल्कि ये प्राथना करें कि हम उनका सामना करने में निडर रहें”। विपरीत परिस्थितियों में भी अपार संभावनाएं छुपी रहती है। अल्फ्रेड एडलर के अनुसार, “मानवीय व्यक्तित्व के विकास में कठिनाइंयों एवं प्रतिकूलताओं का होना आवश्यक है। ‘लाइफ शुड मीन टू यु’ पुस्तक में उन्होने लिखा है कि, यदि हम ऐसे व्यक्ति अथवा मानव समाज की कल्पना करें कि वे इस स्थिती में पहुँच गये हैं, जहाँ कोई कठिनाई न हो तो ऐसे वातावरण में मानव विकास रुक जायेगा।“

    🌴   डॉ. ए.पी.जे.अब्दुल्ल कलाम साहब का मानना है - "Waves are my inspiration, not because they rise and fall,
But whenever they fall, they rise again.”
विपरीत परिस्थिती में निराशा का भाव पनपना एक साधरण सी बात है, किन्तु निराशा के घने कुहांसे से वही बाहर निकल पाता है जो अदम्य साहस के साथ अविचल संकल्प शक्ति का धनि होता है। ऐसे लोग पर्वत के समान प्रतिकूलताओं को भी अपने आशावादी विचारों से अनुकूलता में बदल देते हैं...।

                  हरि 🚩ॐ
         🍁 जय गुरुदेव 🍁

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