geeta tatv 12
अर्जुन का प्रश्न - 10
अर्जुन कहते हैं------हे प्रभू ! आप स्वयं के बारे में जो कह रहे हैं वह सत्य है , अब मैं मोह रहित हूँ पर
आप का ऐश्वर्य रूप देखना चाहता हूँ ----गीता श्लोक 11.1....11.4 तक ।
उत्तर में हमें गीता श्लोक - 11.5 से 11.30 तक को देखना है , यहाँ इन गीता के 26 श्लोकों में श्री कृष्ण के चार
श्लोक, संजय के छः श्लोक और अर्जुन के सोलह श्लोक हैं । अर्जुन अपनें को छिपानें में लगे हैं और मोह ग्रसित की यह पहचान भी है । अर्जुन यह कह तो रहे हैं की आप जो कह रहे हैं वह सत्य है लेकिन उनकी यह बात ऊपर - ऊपर से निकल रही है । अभी ऐश्वर्य रूपों को देखा भी नही क्योंकि उनको अभी दिब्य चक्षु [ गीता- 11।8]मिलनीं हैं और बिना उनके निराकार को कैसे देखा जा सकता है ?
अभीं तक ; अध्याय पाँच , सात, आठ , नौ तथा दस में कुल अपनें 114 रूपों को दिखा चुके हैं लेकिन अर्जुन को तृप्ति नहीं मिल पायी है । अर्जुन स्वयं को भ्रम-मोह रहित मानते हैं तथा श्री कृष्ण को परम ब्रह्म भी मानते हैं पर उनके प्रश्न पूछनें का सिलसिला जारी है । आप नें अर्जुन के प्रश्न 09 को देखा--अर्जुन कहते हैं ---
आप भूतों के ईश्वर , परम ब्रह्म हैं और यह भी पूछ रहे हैं ---मैं आप को किन - किन भावों में स्मरण करू ?
गीता-श्लोक 10.17--11.46 तक में र्जुन के चार प्रश्न हैं और ऐसा दीखता है की श्री कृष्ण जैसे-जैसे अर्जुन के
भ्रम को दूर करनें का प्रयाश कर रहे हैं अर्जुन वैसे - वैस और अधिक भ्रमित होते जा रहे हैं । अर्जुन गीता में अपनें को प्रश्न एक से प्रश्न नौ तक तो खूब छिपाया लेकिन अब वे असफल होते दीखते हैं । यहाँ देखनें की बात यह है की संजय जिनको वेद्ब्यास से दिब्य नेत्र [गीता 18.75] मिले थे वे तो भ्रम रहित स्थिति में साकार श्री कृष्ण में निराकार कृष्ण को देख रहें हैं वह भी दूर से लेकिन अर्जुन श्री कृष्ण के साथ हैं उनसे इनको ऐश्वर्य रूपों को देखनें के लिए दिव्य नेत्र मिले हैं फ़िर भी भ्रमित हैं ।
अर्जुन गीता श्लोक 11.15--11.31 तक में कहते हैं ---मैं आप को मुकुट युक्त , गदा धारण किए हुए , चक्र को
धारण किए हुए परम प्रकाश मय अबिनाशी आदि- अंत रहित परम ब्रह्म के रूप में देख रहा हूँ और साथ में प्रश्न
भी करते हैं .....आप उग्र रूप वाले कौन हैं ?---प्रश्न - 11 , अब आप सोचिये की गीता के अर्जुन क्या हैं ?
भ्रम-मोह से जो बाहर निकल गया वह परमात्मा की ओर अपना रुख कर लिया लेकिन यह इतना सरल
भी नही । अर्जुन जैसे ब्यक्ति के लिए उसे मोह मुक्त करनें के लिए परम श्री कृष्ण जैसे तत्त्व - ग्यानी को
गीता में 556 श्लोकों का सहारा लेना पडा फ़िर हम- आप के लिए श्री कृष्ण जैसे परम ग्यानी कहाँ मिलेंगे ?
गीता के लय में अपनीं लय को मिलानें का प्रयाश गीता के श्री कृष्ण से मिला सकता है ।
-- सत्यजीत तृषित
=====ॐ======
अर्जुन का प्रश्न - 11
अर्जुन पूछते हैं [गीता श्लोक ..11.31 ]---कृपया बताएं की उग्र रूप वाले आप कौन हैं ?
अध्याय 2 से 9 तक गीता के 325 श्लोकों में अर्जुन के 18 श्लोक हैं तथा इन आठ अध्यायों में आठ प्रश्न हैं
लेकिन आगे अध्याय 10 से 12 तक में इनके गीता के कुल 97 श्लोकों में से 59 श्लोक हैं एवं सात प्रश्न हैं --
यह बात सोचनें लायक है ....आप सोचिये और अर्जुन की ब्याकुलता को समझिये ।
अर्जुन का अगला प्रश्न गीता-श्लोक 11.45 से है अतः यहाँ हम 11.32 से 11.44 तक के श्लोकों को देखेंगे , जिनमे तीन श्लोक श्री कृष्ण के हैं , एक श्लोक संजय का है और नौ श्लोक अर्जुन के हैं । श्री कृष्ण कहते हैं--------उग्र रूप में मैं इस समय महा काल हूँ जो सभी लोकों का विनाश करता है । मैं प्रति पक्षी सेना के लोगों को मार चुका हूँ , तूं इन मुर्दा लोगों को मार कर अपना नाम कमा , तूं भय रहित हो कर युद्ध कर । तू निमित्त मात्र बनजा ये लोग तो पहले ही मारे जा चुके हैं ।
अर्जुन कहते हैं ---आप सत-असत से परे हैं , ब्रह्मा के भी आदि करता हैं । गीता में [गीता श्लोक 9.19,13.12]में श्री कृष्ण कहते है --मैं अमृत- मृत्यु ,सत - असत हूँ और न सत हूँ न असत हूँ और अर्जुन श्री कृष्ण से भी आगे की बात कह रहे हैं ...इस बात पर भी आप सोच सकते हैं ।
अर्जुन की मन-स्थिति असंतुलित है क्योकि वे मोह में उलझे हुए हैं और ऐसा ब्यक्ति कुछ भी बोल सकता है ।
अर्जुन श्री कृष्ण को परम ब्रह्म , परम धाम कहते तो हैं लेकिन साथ में प्रश्न भी पूछते हैं , प्रश्न पूछनें से यह
स्पष्ट होता है की उनकी बुद्धि भ्रमित है ।
अर्जुन अपना अगला प्रश्न में कहते हैं --हे प्रभु ! मैं आप के उग्र रूप को देख कर भयभीत हो गया हूँ , आप कृपया मुझे अपना विष्णु रूप दिखाएँ ।
गीता का अर्जुन ठीक वैसा है जैसे हम- आप इस संसार में रह रहे हैं , जो कुछ भी मुट्ठी में आगया चाहे वह
भला हो या बुरा उसे छोड़ना नही है और साथ में यह भी कामना करते रहना है की जो नही है वह हमारे
बंद मुट्ठी में आजाये ---क्या यह सम्भव है ?
-- सत्यजीत तृषित
=====ॐ=======
अर्जुन का प्रश्न - 12
अर्जुन कहते हैं [ गीता - श्लोक 11.45 , 11.46 ] ....हे प्रभु ! मैं आप का उग्र रूप देख कर भयभीत हो गया हूँ , आप कृपया मुझे अपना विष्णु रूप दिखाएँ ।
प्रश्न के उत्तर में हमें गीता-श्लोक 11.47 से 11.55 तक को देखना है क्योंकि अर्जुन का अगला प्रश्न गीता- श्लोक
12.1 से है । अर्जुन को तामस गुण से सात्विक गुण पर केंद्रित करनें के लिए परम श्री कृष्ण अभी तक
क्या- क्या नहीं किए ; अपनें को परमात्मा बताते हुए लगभग सौ से भी अधिक साकार एवं निराकार रूपों
को दिखा चुके हैं लेकिन अर्जुन का तामस गुण कमजोर पड़नें के बजाय और मजबूत हो रहा है । अर्जुन को
अपना ऐश्वर्य रूपों को दिखानें के लिए परम श्री कृष्ण दिव्य नेत्र [गीता श्लोक 11.8 ] भी दिए लेकिन अर्जुन अब भी तृप्त नहीं दिख रहे ।
अर्जुन के लिए यह युद्ध एक ब्यापार है [गीता-श्लोक 1.22 ] और परम के लिए [गीता-श्लोक 2.31, 2.33 ] यह धर्म युद्ध है गीता की रचना होनें का यही बुनियादी कारण है । यदि प्रारंभ में श्री कृष्ण अर्जुन को यह बात स्पष्ट कर दिए होते की यह युद्ध कैसे धर्म युद्ध है ? तो शायद बात इतनी लम्बी न चलती । अर्जुन गीता श्लोक 11.17 में श्री कृष्ण को मुकुट युक्त, गदा युक्त तथा चक्र युक्त एवं परम प्रकाश मय देख चुके हैं लेकिन पुनः इस रूप को क्यों देखना चाहते हैं , यह बात आप को समझनीं है । ब्यापार राजस एवं तामस गुणों की ऊर्जा से आगे चलता है और धर्म को सात्विक गुण से ऊर्जा मिलती है । श्री कृष्ण त्रिकाल दर्शी हैं वे जानते हैं की इस युद्ध को टाला नहीं जा सकता , युद्ध तो होना ही है तो क्यों न इसे ध्यान विधि की तरह प्रयोग करके
अर्जुन को राजस- तामस गुणों के सम्मोहन से परे करके सात्विक गुण में ला कर वह आयाम दिखा दिया
जाए जिस को देखनें के लिए मनुष्य योनी मिलती है । श्री कृष्ण इस युद्ध को ध्यान का माध्यम मानते हैं
और अर्जुन इस बात को समझ नहीं पा रहे । गीता अध्याय 11 का समापन हो रहा है गीता के 700 श्लोकों
में से 469 श्लोक पूरे भी हो चुके हैं लेकिन अर्जुन की भाव दशा में कोई परिवर्तन देखनें को नहीं मिलता। अभी तक गीता में आत्मा-परमात्मा , कर्म, कर्म-योग , कर्म- संन्यास , बैराग्य तथा ज्ञान से सम्बंधित
सभी बातों को बताया जा चुका है लेकिन अर्जुन के लिए अभी तक ये बातें असर दार साबित नहीं हो पायी हैं । परम श्री कृष्ण अर्जुन के आग्रह पर अपना विष्णु रूप दिखाते हैं [ गीता श्लोक 11.50 ] और
अर्जुन कहते हैं ----अब मैं स्थिर चित्त हो गया हूँ लेकिन इनकी यह बात भी ऊपर-ऊपर से निकल रही है क्योंकि अर्जुन इसके बाद भी चार और प्रश्न करते हैं । स्थिर चित्त वाला कभीं भी प्रश्न नहीं करता , उसकी बुद्धि में प्रश्न पैदा करनें वाली ऊर्जा नहीं होती ।
-- सत्यजीत तृषित
=====ॐ========
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