हाथ जोडकर मस्तक नवाकर वन्दना करना >
हाथ क्रिया शक्ति का प्रतीक है । हाथ जोड़ने का तात्पर्य है कि मैँ अपने इन हाथोँ से सत्कर्म करुँगा ।
मस्तक नवाने का अर्थ है कि मैँ अपनी बुद्धि शक्ति को हे प्रभू ! आपको अर्पित करता हूँ ।
वन्दना करने का अभिप्राय है कि अपनी क्रिया शक्ति को और बुद्धि शक्ति को श्रीभगवान को अर्पित करना ।
श्री भगवान को वन्दन करने से पाप ताप का नाश होता है। निर्भयता प्राप्त करने के लिए प्रेम पूर्वक भगवान श्रीकृष्ण , श्रीराम या भगवान आशुतोष शिव की वन्दना करनी है । प्रभू दयानिधि है। केवल वाणी और शरीर से ही नहीँ , बल्कि हृदय से भी भगवान की वन्दना करना चाहिए। हृदय से वन्दना करने से प्रभू के साथ ब्रह्म सम्बन्ध होता है । प्रेम से परमात्मा को प्रणाम करने से प्रभू प्रसन्न होँगे । प्रभू के मुझ पर अनन्त उपकार हैँ । बोलने को जीभ , सुनने को कान , देखने को आँख, विचार करने हेतु मन , बुद्धि एवं विचारशक्ति परमात्मा ने ही दी है । ईश्वर के उपकारोँ को याद करते हुए यह कहे कि हे प्रभू मैँ आपका ऋणी हूँ । हे प्रभू आपकी कृपा से मैँ सुखी हूँ। मेरे पाप अनन्त हैँ , परन्तु हे नाथ आपकी कृपा भी अनन्त है ।
इसप्रकार वन्दन करने से अभिमान नष्ट होता है ।
जीभ से भगवान के पवित्र नामोँ का संर्कीतन करेँ , आँखो से भगवान की मंगलमय दिव्य झाँकी का सर्वत्र दर्शन करेँ, प्रभू की दिव्य लीलाओ का श्रवण करेँ , मन मेँ किसी के प्रति कुविचार का चिन्तन न करेँ , बुद्धि से किसी का अहित न हो ऐसा कार्य करेँ । तभी प्रभू प्रसन्न होगे !!
Saturday, 2 January 2016
रहस्य भाव 75
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