Tuesday, 26 January 2016

मरा शब्द

कल रात्रि मरा शब्द की कमेन्ट सीरीज़ देखी । सभी ने गहन चिंतन दिए ।
और जो सार प्रगट हुआ वो तो यें ही था , उल्टा सीधा एक समान ।
एक और बात ।
आज कुछ परत खुली लिख भी रहा था , लेख ।परन्तु साहस न हुआ । शब्द समीक्षा नहीँ आती सो । कभी कभी अज्ञानता वरदान बन जाती है । आप परम् रसमय साधक है । आप चिंतन किये ही होंगे ।
आप लोम विलोम प्रतिलोम की विधि से परिचित होंगे ही । स्वामी जी श्री रामसुख दास जी का एक रिकॉर्ड सुना था कभी । उसमें भावो में उन्होंने कह दिया कि मैंने उल्टी गीता का पाठ किया , आप भी कर के देखें रस बढेगा । अच्छा लगेगा । वें कहे मैंने किया है । सिद्धांत से उल्टी गीता का भावार्थ करे तो सब उल्ट ही होगा , उत्तर पहले , प्रश्न बाद में । और समाधान से जिज्ञासा की यात्रा होगी । परन्तु सच में रस बढेगा । सप्तशती के नाना विधि पाठ प्रचलित है । अर्थ की दृष्टि से उन्हें लिखा जाये तो लगेगा कि सम्भवतः साधक पागल हो गया , कभी क्या कभी क्या , कोई क्रम नहीँ । योग ,ज्ञान ,तन्त्र या भक्ति बात एक ही कहते है भेद हीनता । पूर्ण श्रद्धा ।
जीवन के तीन आयाम है । जन्म मृत्यु मरण । सर्वत्र राम है तो कहीँ से भी कहो , शब्द के पीछे भावना की प्रबलता है , वही शब्दशक्ति है । सम्बोधन तो ...
और उल्टे पाठ आदि में पहले सीधे में गहन श्रद्धा हो , यहाँ गुरु भक्ति भी है कि सन्त की किसी भी बात पर निष्ठा हो तो मरा शब्द भी ईश्वरवाची हो जाता है । आज मेरी बेटी जो कि टिन वर्ष की भी नहीँ उसे मरा शब्द का अर्थ ज्ञात है , सम्भवतः उसे उसकी माला के लिए कहू तो वह मम्मी से मेरी शिकायत करेगी , देखो गलत बुलवा रहे है । और यें ही निष्ठा का खण्डन है । संसार में ऐसे बहुत से राम है जहाँ रामत्व नहीँ प्रतीत होता , वैसे राम हीन सृष्टि और तत्व ही नहीँ । फिर भी ऐसे व्यक्तित्व में स्ववाद ही होता है । और पापी से पापी मर जाएं , शत्रु भी तो हाथ जुड़ जाते है , देह मिट्टी हो चुकी पर राम मान हाथ जुड़ जाते है और होड़ लगती है , छुने की । जिसने मृत्यु में राम देख लिये वही रामायण लिख सकता है क्योंकि उसका निज जीवन रहा ही नहीँ । और राम हम बोलते है क्योंकि हमारे पास राम है । वाल्मीकि जी की कथा अवतार से पूर्व रामायण लिखने की है , शब्द होंगे तो सृष्टि होगी । सम्भवतः उनकी यात्रा उल्टी थी , और कठिन थी ।

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