सुबह एक विचार आया ...
कष्ट हो तो क्षमा करियेगा ...
श्री हरि शिव के परम् भक्त रूप में परशुराम हुये |
इतने परम् कि जब श्री हरि स्वरूप ही श्रीराम
ने धनुष पर प्रत्यंचा चढाने का प्रयास किया
तो वह जब टुट गया तो उसी सभा में कई परम्
शिव भक्त थे जैसे ... जनक , वशिष्ठ , विश्वामित्र ,
रावण आदि पर परशुराम को वहाँ ना होते हुये भी
भान हो गया | तत्क्षण वह आ ही गये | ...
क्या लीला थी हरि का किया हरि को अखरा ...
इसके आगे औपचारिक लीलायें हुई जैसे
परशुराम का महाक्रोध और ठीक विपरित
श्री राम की विनम्रता पुर्ण उस समय के समत्व
भाव | कुछ ना कहना ... फिर अपने स्वामि का
विरोध ना सह पाने से श्री शेषावतार का अपने ही
स्वामि के अन्य रूप का भावावेश उत्तर ...
अद्भुत | हरि - हर को समझने हेतु यें मार्मिक प्रसंग
है | कितने परम् भक्त रहे श्री परशुराम ... श्री हरि ..
हर के |
क्षमा चाहुगाँ पर मेरे विचार से शिव का दिव्य प्रसाद स्वरूप
धनुष राम ने तोडा ही नहीं ... उनके स्पर्श को पा कर शिव ने
उसका खण्डन किया | राम की शरण में यें समर्पण रहा होगा |
वरन् राम परम् करुणामय है | शिवउपासक भी ... परन्तु शिव यहाँ
भावमय हो गदगद हो गये | और जब जनक जी को हरि जमाता रूप में
मिल रहे है तो वह भी शिव-भक्ति के प्रसाद स्वरूप ...
श्री जनक नन्दिनी की सेवा में रहा वह धनुष अब वहाँ वियोग में ना रह पाता
सो जानकी की रक्षा हेतु श्रीराम के धनुष में ही तत्व रूप में लीन हो गया | ...
हरि और हर विपरित उपासक और उपास्य मान सदा रहे है यें मेरा मत है |
नर - नारायण में भी मुझे वहीं दर्शन हुये है | भक्ति में होने वाला रुदन शिवकृपा
से ही सम्भव है || ... जय जय श्री युगल सरकार || जय जय युगल अवतार |
आपका क्या विचार है ? जरुर दें ... सत्यजीत !!
Tuesday, 5 January 2016
राम का धनुष भेदन
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