वह कहाँ गया होगा ?
जब यह संसार किसी को पराया समझनें लगे .....
जब अपने पराये से लगते हों ......
जब सभी सहारे टूटते दीखते हों ......
जब सभी राह कांटो भरी दिखती हों .....
तब वह ब्यक्ति क्या करता है ?
या तो वह खुदकशी करके अपनें को समाप्त कर देता है या ....
बैरागी के कपडे डाल कर काशी - प्रयाग में भीख माँगता है ।
क्या बैरागी के कपड़ों को अपनानें से वह बैरागी हो पाता है ? जी नहीं .....
भागा हुआ ब्यक्ति कभी भी चैन से नहीं रह पाता , ज़रा इस बात पर
जिस से भागोगे प्यारे वह आप का पीछा करता ही रहेगा , चाहे वह हिमालय हो या अपना घर ।
अब आगे -------
सुख का जहां अंत होता है , क्या वहाँ से दुःख का प्रारम्भ नहीं होता ?
दुःख का जहां अंत होता है क्या वहाँ से सुख का प्रारम्भ नहीं होता ?
अब सोचिये ज़रा -------
जहां सुख - दुःख मिलते हैं अर्थात वह रेखा जो सुख- दुःख को अलग करती करती है , वह क्या है ?
वह क्या .........
गीता का सम भाव ॥
गीता का सम भाव वह है .......
जहां से एक ओर प्रभु का आयाम होता है और ----
दूसरी ओर भोग संसार का .....
वह ब्यक्ति जो चला था वह संसार की ओर तो अपना रुख अब कर नहीं सकता ,
उसका रुख जरुर हुआ होगा प्रभु की ओर , और यदि ......
वह आत्म ह्त्या किया होगा तो वह .......
निहायत कमजोर ब्यक्ति रहा होगा ॥
***** *****
बहुत से अरमान रहें होंगे , उसके दिल में
बाबू ! यह संसार है , यहाँ सब कुछ मिलता है ........
यहाँ ऐसा कोई न होगा जिसके कोई अरमान न हों , बिना अरमान का क्या कोई जीवन है ?
यहाँ कोई गणेशजी की पूर्ति बना कर अपना अरमान पूरा करना चाहता है ,
यहाँ कोई दारु बना कर अपनें अरमान पुरे करना चाहता है ।
यहाँ कोई किसी को अपना खून दे कर अपना अरमान पूरा करता है तो ...
कोई किसी का खून पी कर अपना अरमान पूरा करता है ॥
यहाँ कोई किसी की किडनी चुरा कर अपना अरमान पूरा करना चाहता है ,
कोई अपनी किडनी दे कर अपना अरमान पूरा करता है ,
क्या क्या देखोगे , यहाँ .....
यहाँ सब कुछ देखनें को है लेकीन दिखता वही है जो मन देखना चाहता है ॥
अरमान तो अरमान ही होता है और अरमान का अर्थ है ......
वह जो हमें तो समाप्त करदे लेकीन स्वयं बना रहे ,
बुद्ध कहते हैं ......
कामना दुस्पुर होती हैं अर्थात कामना वह जो कभी समाप्त न हो ।
अरमान जब मनोरंजन का साधन सा दिखे तो समझना मार्ग सही है और .....
अरमान जब माथे के पसीनें को सूखनें न दे तो समझना , मार्ग नरक की ओर जा रहा है ॥
अरमान एक तरफ प्रभु की ओर जाता है और ....
दूसरी ओर नरक की ओर , आप को कहाँ जाना है ?
*****
ऎसी बात कौन कह सकता है ?
मैं , लगता है कुछ भ्रम में था ........
अपना झोपड़ा एक कदम पहले बना लिया था ......
लेकीन अब ------
उसमें ही बसेरा करूंगा , जिस में सभी जाते हैं [ मौत ] ....
आप सोचना की ऐसी बात कौन कह सकता है ?
बाबा कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे , उनके प्रेमी लोग उनकी खूब सेवा किया ।
बाबा चलते - चलते बोले -- आप सब को कैसे धन्यबाद करूँ , आप लोग तो मेरे लिए
निराकार प्रभु के साकार रूप हैं , मैं तो आप सब का धन्यबाद ही कर सकता हूँ , और मेरे हाँथ में
है भी क्या ?
उसनें अच्छी सीख दिया , जो कुछ मैं का अंश बचा था , वह सब उसनें निकाल दिया ,
ऐसा लगता है , अब पता चला की
मैं भ्रम में था और जिस जगह अपना झोपड़ा बना रखा था , वह जगह एक कदम पीछे थी ,
उस के आश्रम से जहां सभी को जाना ही पड़ता है चाहे होश में या बेहोशी में ,
यहाँ यही एक सत्य दिखता है ।
जन्म , जीवन और मृत्यु - तीन अवस्थाएं हैं जिनके होश के माध्यम से प्रभु में पहुंचना संभव है ।
जन्म का तो पता न चला , जीवन लगता है भ्रम में कहीं खो गया अब तो मृत्यु ही शेष है जिसके
माध्यम से प्रभु को जाना जा सकता है , और यदि यह मौक़ा भी हाँथ से निकल गया तो समझो
लम्बी यात्रा से गुजरना होगा ॥
अब तो अपना झोपड़ा एक कदम आगे सरकाना पड़ेगा जिस से उसके माध्यम से अपनें को भुला कर
प्रभु की हवा में रहा जा सके ॥
मौत प्रभु का प्रसाद है , जो सम भाव से सब को मिलता है चाहे कोई
चाहे या न चाहे ॥
मृत्यु में कुछ तो विशेषता है , जो किसी भी स्तर के जीवन को एक समान धरातल पर ला खड़ा करती है ........ सम्भवतः कोई अवसर है ।
***
और क्या देखा ?
बुद्ध अपनें भिक्षुकों को दीक्षा पूर्व छ: माह ले लिए मरघट पर भेजते थे .......
रात और दिन भिक्षुक को मरघट पर ही रहना होता था ...........
आखिर वह भिक्षुक वहाँ क्या अनुभव करता रहा होगा ?
मरघट एक ऎसी जगह है जहां एक दिन सब को जाना ही होता है चाहे वह .......
राजा हो
रंक हो
अमीर हो
गरीब हो ॥
जबतक तन में प्राण है , कौन मरघट पर अपना झोपड़ा डालना चाहता है ?
जीवन का प्रारम्भ चाहे महल से हुआ हो या पगडंडी से हुआ हो .......
जीवन का प्रारंभ चाहे पांच सितारा होटल की पार्टी से हुआ हो , या
भिक्षा में मिले जूठे भोजन से हुआ हो ----
सब को एक दिन मरघट पर अपनी यात्रा समाप्त करनी ही पड़ती है ॥
मौत एक परम कम्युनिस्ट है जिसकी निगाह में सब एक हैं ,
चाहे वे .....
राजा हों -----
भिखारी हों ----
प्रधान मंत्री रहें हों .....
या चोर रहे हों ॥
मौत एक परम सत्य है
लेकीन ------
कोई इस की चर्चा करना नहीं चाहता , आखिर इस से इतनी नफरत क्यों ?
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