Sunday, 17 January 2016

भक्ति सूत्र 4

अमृतस्वरूपा च। । 3। ।
यल्लब्ध्या पुमान सिद्धो भवति अमृतो भवति तृप्तो भवति। । 4। ।

“अमृतस्वरूपा है! “

“वह भक्ति परम प्रेमरूपा है और अमृतस्वरूपा है। “ क्योंकि जिसने परम प्रेम जाना, फिर उसकी कोई मृत्यु नहीं। क्यों, क्योंकि वह तो मर ही चुका, अब मरेगा कैसे , मरना तो त भी तक शेष है जब तक तुम मिटे नहीं, मरे नहीं। मौत तो त भी तक डराएगी जब तक तुम हो। जिसने अपने को खो दिया उसकी कैसी मौत! उसने मौत पर विजय पा ली! वह अमृस्वरूप को उपलब्‍ध हो गया!

ध्यान रखना: अहंकार की ही मृत्यु होती है, तुम्हारी कभी नहीं होती, कभी हुई नहीं, हो नहीं सकती। तुम शाश्रवत हो, सनातन हो, सदा थे, सदा रहोगे। अन्य था कोई उपाय नहीं है। तुम चाहो भी अपने को मिटा लेना तो नहीं मिटा सकते। मौत होती ही नहीं। लेकिन तुमने एक अपना काल्पनिक आकार, रूप समझ रखा है। उस कल्पना की मौत होती है। तुमने अपनी एक अहंकार की प्रतिमा बना रखी है। परमात्मा से जुदा तुमने अपने को “मैं “ कहने का भाव बना रखा है। वही मैं- भाव मरता है। चूंकि तुम उससे बड़े जुड़े हो, तुम्हें लगता है, “मैं “ मरा! “मैं “- भाव छूट जाये…”अमृत-स्वरूपा च”…..तब, तब जो मिलता है उसकी कोई मृत्यु नहीं है।

“यल्लब्ध्वा पुमान सिद्धो भवति, अमृतो भवति, तृप्तो भवति।”

“उस भक्ति को प्राप्त कर मनुष्य सिद्ध हो जाता है, अमर हो जाता है और तृप्त हो जाता है। “ … “सिद्ध हो जाता है! “सिद्ध का अर्थ होता है,

सिद्ध का अर्थ होता है: जो होने को थे वही हो गये। जो बीज की तरह लाये थे वह खिल गया फल की तरह: सिद्ध का अर्थ होता है।

सिद्ध का अर्थ होता है : अब और साधना करने को न रही, अब और कोई साध्य न रहा, अब सभी साधनों के पार हो गये।

सिद्ध का अर्थ होता है : तुमने पा लिया अपने स्वभाव को, अपने स्वरूप को, पहुंच गए उस परम मंदिर में जिसकी तलाश थी, जन्मों-जन्मों अनंत काल तक जिसे खोजा था, जिसके लिए भटके थे।

स्वयं को खोते ही व्यक्ति सिद्ध हो जाता है। इसका अर्थ हुआ कि सारा भटकाव अहंकार का है। तुम इसलिए नहीं भटकते कि कोई तुम्हें और भटका रहा है, तुम इसलिए भटकते हो कि तुम हो। जब तक तुम हो, भटकोगे। तुम मिटे कि पहुंचे। मिटने में ही पहुंच जाना है। होने में ही भटकना है।

“अमर हो जाता है, तृप्त हो जाता है।”

जिस भक्ति के प्राप्त होने पर मनुष्य न किसी वस्तु की इच्छा करता है, न द्वेष करता है, न आसक्त होता है और न उसे विषय-भोगों में उत्साह होता है। “

“इतिब्दा वो थी कि जीने के लिए मरता था मैं

इतिन्हा ये है कि मरने की भी हसरत न रही।

ऐसे भी दिन थे जब जीने के लिए ऐसी आतुरता थी कि मरने को भी तैयार हो जाता था। और आखिरी वक्त–इन्तिहा यह है–और आखिरी बात यह है, पहुंच जाने की बात यह है कि मरने की भी हसरत न रही। जीने की तो बात छोड़ो, मरने की भी आकांक्षा नहीं उठती।

तुमने कभी खयाल किया–तुम्हें मरने की आकांक्षा तभी उठती है जब तुम्हारी जीवन की आकांक्षा पूरी नहीं होती! जहां-जहां अड़चन आती है जीवन की आकांक्षा में, वहीं तुम कहते हो कि मर जाना बेहतर है। मरना तुम चाहते नहीं। जीना तुम चाहते हो अपनी शर्तों पर। शर्त कभी पूरी नहीं होती, तो मरने की तैयारी करने लगते हो।

रूसी कहानी है कि एक लकड़ हारा लौट रहा है गट्ठर लेकर सिर पर। जिंदगी- भर लकड़ियां ढोता रहा है, थक गया है। … सभी थक जाते हैं, और सभी लकड़ियां ढो रहे हैं। काटो जंगल से, बेचो बाजार में, फिर दूसरे दिन काटो जंगल से, फिर बेचो बाजार में!… थक गया है। हइडी-हइडी जराजीर्ण हो गयी है। उस दिन तो वह बड़ा दुखी है कि इससे भी क्या सार है। “यही करता रहूंगा, और एक दिन मर जाऊंगा और मिट्टी में गिर जाऊंगा।

तो उसने कहा, “ऐ मौत, सभी को आती है, एक मुझ ही को छोड़ देती है। मुझे क्यों नहीं आती? उठा ले मुझे!” ऐसे मौत साधारणत : इतना जल्दी सुनती नहीं। पर कहानी है कि मौत ने सुन लिया। मौत आ गयी। लकड़हारा गट्ठर को पटककर दुखी मन से बैठा था। मौत ने आकर कहा “मैं आ गयी हूं, बोलो क्या काम है?”

देखो मौत को, हाथ-पैर कैप गये, प्राण कैप गये, सांस रुक गयी। उसने कहा, “नहीं, कुछ काम नहीं, कोई और दिखायी नहीं पड़ा, गट्ठर उठवाकर सिर पर रखवाना है। कृपा कर और द्वार उठाकर सिर पर रख दे। “

तुम जब भी मरने की बात करते हो तब गौर से देखना : वहां जीने की आकांक्षा बड़ी गहरी है। इसलिए जो लोग आत्महत्या करते हैं, तुम चौंकना मत, तुम यह मत सोचना कि इन लोगों ने आत्महत्या कर ली, बात क्या है! आदमी तो जीना चाहता है, ये मर कैसे गये! ये बहुत बुरी तरह जीना चाहते थे, बड़ी प्रगाढ़ता से जीना चाहते थे। इनकी शर्तें बड़ी थीं, जिंदगी पूरी न कर पायी। ये जिंदगी से नाराज हो गये। ये जिंदगी को तो न मिटा पाये, ये जिंदगी को मिटाने के लिए तत्पर हो गये थे–अपने को मिटा लिया। मगर इनकी आत्महत्या में जीवन की आकांक्षा है, जीवेषणा है।

जब तुम जीवन की आकांक्षा छोड़ देते हो, तब तुम चकित हो जाओगे कि उसके साथ-ही-साथ मृत्यु की आकांक्षी छूट जाती है। जिस व्यक्ति के जीवन को जीवेषणा से छुटकारा मिल गया, जो अभी राजी है कि मौत आ जाए तो तैयार पाये, जो यह भी नहीं कहता कि कल मुझे जीना है–उसे तुम कभी आत्महत्या करता न पाओगे, हालांकि तुम्हें लगेगा कि इसे तो आत्महत्या कर लेनी चाहिए जब यह आदमी कहता है कि मुझे जीने का कोई सवाल नहीं है तो इसे आत्महत्या कर लेनी चाहिए। लेकिन आत्महत्या तभी की जाती है जब जीने की बड़ी गहरी आकांक्षा होती है। यह आत्महत्या भी क्यों करे, मरने की हसरत न रही। उतनी आकांक्षा भी नहीं है अब। .... क्रमशः ...... !!!!

No comments:

Post a Comment