गीता तत्व 11
अर्जुन का प्रश्न - 8 भाग....4
इस भाग में हम गीता के 34 श्लोकों [गीता श्लोक 9.1--9.34 तक ] को देखनें जा रहे हैं ।
गीता मूलतः साँख्य- योग आधारित है अतः इनमें दीगई बांते सांख्य आधारित ही हैं। आज लोग गीता तो पढ़ते हैं
लेकिन इसकी गणित को भूल चुके हैं और इस कारण से गीता लोगों के अन्दर आसानी से नहीं पहुंच पाता।
देखिये गीता सूत्र ----7. 7 , 9.6 - 9.7 , 8.17- 8.19 , 9.4- 9.5 , 7.4- 7.6 , 13.5- 13.6 , 13.19 , 14.3- 14.4 , 15.16
जब आप इन श्लोकों में रमेंगे तो जो मीलेगा वह कुछ इस प्रकार होगा----जो कुछ भी ब्याप्त है , जो कुछ हम
जानते हैं या जान सकते हैं वह सब प्रकृति- पुरूष के योग का फल है । परमात्मा से परमात्मा में तीन गुणों की
माया से दो प्रकृतियाँ हैं जिनमें अपरा के आठ तत्वों में पञ्च महाभूत एवं मन, बुद्धि तथा अंहकार हैं और परा
निर्विकार चेतना है।
आगे इस प्रश्न के सन्दर्भ में परम श्री कृष्ण अर्जुन को यह बताना छते हैं की वे स्वयं परमात्मा है और इसके
लिए कुछ उदाहरणों को इस प्रकार से देते हैं ------
रिग-वेद , यजुर्वेद , साम वेद , ॐ मैं हूँ [ गीता सूत्र - 8.12, 8.13, 9.17, 9.23, 10.22, 10.25] और कहते हैं ,
यज्ञ में मंत्रों से लेकर पूर्णाहुति तक जो कुछ भी होता है , सब मैं हूँ [ गीता सूत्र- 9.16 ] तथा यह भी कहते हैं , सूर्य
की गरमी , बर्षा का कारण, सत-असत एवं न सत न असत मैं हूँ [ गीता सूत्र- 9.19, 10।21, 13.12 ]
इस प्रश्न के संदर्भ में हमें गीता के निम्न श्लोकों को भी देखना चाहिए -------
9.13, 9.14, 9.15, 9.25, 16.1-16.2, 16.3, 7.14, 9.12, 16.4, 16.5, 16.8, 16.10, 16.12, 16.13, 16.14,
16.15, 16.16, 16.18, 7.15-7.16, 4.12
यहाँ इन श्लोकों में दो प्रकार के लोंगों की बातें बताई गयी हैं ; एक वे लोग हैं जो अपनें जीवन को परमात्मा को
अर्पित करके जीते हैं और दूसरे वे लोग हैं जिनके जीवन का केन्द्र मात्र भोग है । भोगी लोग परमात्मा से भी
भोग प्राप्ती के कारण से जुड़ते हैं ।
इतनी सी समझ काफी है ---भोग साध्य नही साधन है ।
====ॐ======
-- सत्यजीत तृषित !!
अर्जुन का प्रश्न - 8, भाग ...5
सन्दर्भ श्लोक -- 10.1 से 10.16 तक
* भ्रम में अटके को प्रीति की हवा छू नहीं सकती , प्रेमी को भ्रम हो नही सकता और ........
परम-प्रेमी में परमात्मा बसता है ।
* भ्रम प्रश्न की जननी है , अंहकार भ्रम को पालता है और ...........
भ्रम राजस- तामस गुणों की छाया है ।
* गीता कहता है....श्लोक 6.27, 3.37, 2.52--राजस- तामस गुणों को धारण करनें वाला कभीं भी परमात्मा से नही जुड़ सकता।
* प्रश्न रहित ब्यक्ति निर्विकल्प-योग में [ गीता- 10.7 ], बुद्धि-योग में [ गीता- 10.10 ] एवं समत्व- योग
[ गीता-2.47 से 2.51 तक ] में होता है जहाँ उसके मन-बुद्धि एक शांत झील की तरह होते हैं।
अब हम ऊपर दिए गए मूल बातों के आधार पर गीता के कुछ सूत्रों को देखते हैं जो इस प्रश्न -८ से सम्बंधित हैं
# श्लोक - 10.4-10.5 + 7.12, 7.13
श्री कृष्ण कहते हैं ...सभी भाव मुझसे उठते हैं लेकिन उन भावों में मैं नहीं होता तथा मुझमें वे भाव भी नहीं होते।
# श्लोक- 10.8 , 10.20 , 10.32 , 7.10 , 9.18
जो था , जो है , जो होगा सब का आदि मध्य एवं अंत , मैं हूँ ।
# श्लोक- 10.7 , 10.9--10.11 , 2.56 , 5.24 ,6.29-6.30
श्री कृष्ण कहते हैं .....समत्व- योगी , निर्विकल्प - योगी , बुद्धि- योगी , स्थिर- प्रज्ञ या गुनातीत - योगी ब्रह्माण्ड
के हर कण में परमात्मा को देखता है ।
# श्लोक 10.12 श्री कृष्ण की इन बातों को सुननें के बाद अर्जुन कह रहे हैं ...आप परम अक्षर , परम धाम ,
परम ब्रह्म हैं जो सत- अ सत से भी परे है लेकिन अर्जुन की ये बातें ऊपर-ऊपर से आरही हैं नही तो श्लोक
10.17 में यह प्रश्न न पूछते ---आप किन-किन भावों में चिंतन करनें योग्य हैं ? यहाँ अर्जुन के प्रश्न - 8 के सम्बन्ध में गीता के 76 श्लोक [श्लोक 8.3--10.16 ] का समापन हो रहा है अब आप सोचिये की श्री कृष्ण की बातें जिनको वे हिमालय की उच्चतम शिखर से बोल रहें हैं उनको तराई में स्थित अर्जुन कैसे पकड़ सकते हैं?
-- सत्यजीत तृषित !!
अर्जुन का प्रश्न - 9
प्रश्न -- हे भूतों के उत्पत्ति करता, जगत पति , देवों के देव , भूतों के ईश्वर , पुरुषोत्तम आप परम पवित्र परम
धाम एवं परम ब्रह्म हैं । आप की बातों को सुनकर और सुननें की चाह उत्पन्न हो रही है अतः आप मुझें
बताएं की मैं आप को किन-किन भावों में मनन करुँ ?
उत्तर-- प्रश्न की बातों को आप अच्छी तरह से देखलें , अर्जुन जो कुछ भी कह रहे हैं क्या उसके बाद भी कोई और जाननें की गुंजाइश है ?
गीता में श्री कृष्ण 100 से भी अधिक श्लोकों के माध्यम से 150 से भी कुछ अधिक उदाहरणों से अर्जुन को परमात्मा पर केंद्रित करनें का प्रयत्न करते हैं लेकिन उनका यह प्रयत्न बेकार जाता है तो क्या आप समझते हैं ,
हम- आप हनुमान चालीसा पढ़ कर परमात्मा केंद्रित हो पायेंगे ?
श्री कृष्ण गीता -अध्याय 5,7,8 तथा 9 में 40 उदाहरणों से स्वयं को परमात्मा बतानें का प्रयत्न करते है लेकिन यह प्रयत्न विफल हो जाता है और प्रश्न - 9 के सन्दर्भ में पुनः 78 उदाहरणों की मदद से अर्जुन को परमात्मा केंद्रित करनें की कोशिश करते हैं लेकिन यह प्रयत्न भी कामयाब नहीं हो सका। श्री कृष्ण जैसा
सांख्य - योगी अर्जुन जैसे ब्यक्ति को जो स्वयं एक साधक हैं , मोह से निकाल कर परमात्मा पर केंद्रित करनें
में सफल नहीं हो पाते तो क्या आज के धर्माचार्य हम- आप को परमात्मा पर केंद्रित कर सकते हैं ?
अर्जुन के प्रश्न को एक बार पुनः आप देखें , यहाँ ऐसा दीखता है की अर्जुन पूर्ण रूप से कृष्णमय हो चुके हैं पर
यदि ऐसा हुआ होता तो गीता का समापन यहीं हो जाना था लेकिन अर्जुन आगे 7 और प्रश्न करते हैं।
श्री कृष्ण अर्जुन के साथ खड़े हैं , उनके सारथी के रूप में , अर्जुन को बार - बार कह भी रहें हैं की तूं चिंता न कर , बस सब कुछ मुझ पर छोड़ दे और तब देख क्या होता है ? लेकिन अर्जुन को श्री कृष्ण पर एतबार नहीं हो पा रहा । अर्जुन को श्री कृष्ण की ऊर्जा प्रभावित करनें में असमर्थ है और हम मन्दिर की ज्योति की ऊर्जा से सब कुछ पा लेना चाहते हैं ।
गीता के कृष्ण को समझनें के लिए पहले जरुरी है गीता के अर्जुन को समझना । गीता में अर्जुन की जो स्थिति है
ठीक वैसी स्थिति हम-आप की इस संसार में है ।
====ॐ=====
-- पिछले भा और इनमें लम्बा समय की दुरी है , पर नित्य जुड़े रहने पर , कुछ अधूरा नहीँ रहेगा । अगले बहुत भाग है , पर जब हरि इच्छा होने पर ही । सभी को एकत्र कर ब्लॉग भी बनाया जा रहा है ।
-- सत्यजीत तृषित !!
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