Monday, 18 January 2016

कोई सिसक रहा था .......... कोई सुनता होगा 1


कोई सिसक रहा था

सुबह - सुबह मैं एक पेंड के नीचे बैठ कर सुस्ता रहा था , कुछ - कुछ अन्धेरा भी था , मुझे लगा पास में
कोई सिसक रहा है । मैं इधर - उधर देखनें की कोशिश भी की लेकीन कुछ दिख न पाया
पैरों की ओर से एक आवाज आई , मैं हूँ , मैं हूँ की आवाज सुन कर मैं तो घबडाया लेकीन इतनें में
वह बोली - यह मैं - पृथ्वी हूँ ।
पृथ्वी और रोना , कुछ समझ में न आया , मैं पूछ बैठा , बात क्या है ? पृथ्वी बोली , आप पूछते हैं
बात क्या है ?
क्या आप देखते नहीं की मेरे साथ क्या हो रहा है ?
मैं क्या करती , उधर शहर में तो सिसल भी नही सकती थी सोचा चलते हैं बाहर कहीं एकांत में रो लेते हैं ।
विज्ञान के बिकास के साथ मैं बहुत खुश थी , क्या पता था की मेरी ऎसी दशा होगी ?
मनुष्य क्यों इतना स्वार्थी होता जा रहा है ? मैं तो करोड़ों सालों से आप सब की सेवा कर रही हूँ लेकीन
मुझे क्या यही मिलना था ? अब तो हालत ऎसी आ गयी है की श्वास लेना भी कठिन हो गया है ॥  .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... ....

आखिर वह चल पडा -
वह करता भी क्या ? कोई विकल्प न था उसके सामनें ।
उसनें अपनें भविष्य के लिए कभी सोचा ही नहीं
की उसका भविष्य उसके सामनें वर्तमान के रूप में आ खडा हो गया था ।

जब उसे यह एह्शाश हुआ की वह जिस डाल को पकड़ कर चल रहा है वह ड़ाल नहीं ,
उसका अपना भ्रम है , उसका हाँथ तो सदैव खाली ही था ,
तब वह क्या करता , उसे जाना ही था ।

जब उसे पता चला की वह जिसको अपना आँगन समझ रखा है वह उसका नहीं
किसी और का है ,
तो वह क्या करता ?
इस आंगन में कभी - कभी किसी कोनें में बैठ कर दो - चार बूदें अपनें आशू के टपका कर
शांत हो लेता था लेकीन अब यह भी सहारा जाता रहा , फिर वह क्या करता ?

वह अपना सारा जीवन जिनके लिए गवाया था , वे जब उसको पराये से दिखनें लगे
तो वह क्या करता ?
उसे तो जाना ही था ।

इस संसार में कौन कब तक किसका बना रहता है ?
यह एक बहुत बड़ा राज नहीं है सीधी सी बात है -----
[क] जब तन से आप कमजोर हो जाते हैं तो बिल्ली भी आँखें दिखानें लगती है ।
[ख] जब आप का हाँथ खाली हो जाता है अर्थात आप निर्धन हो जाते हैं
तब .......
अपनें भी पराये से होनें लगते हैं ।

आखिर वह कहाँ गया होगा ?
इस बात पर आप भी सोंचे और मैं भी सोच रहा हूँ ।
आगे चल कर देखेंगे की
वह भक्त ........
कहाँ गया होगा ॥ .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... ....


फिर कौन था ?

[क] जब पृथ्वी मानुष शून्य थी पर अन्य सभी थे , तब यह कैसी रही होगी ?

[ख] तब जो थे उनमें क्या परमात्मा नही झांकता रहा होगा ?

[ग] तब सच को झूठ और झूठ को सच कौन बनाता रहा होगा ?

[घ] तब जो था , वह क्या सैट न था , जिसको गीता कहता है ---
नासतो विद्यते भावों नाभावो विद्यते सतः

[च] तब सुख - दुःख का अनुभव कौन करता रहा होगा ?

यें पांच बांते उनके लिए जिनकी बुद्धि भोग में उलझ चुकी है और -----
उनके माथे पर आया पसीना कभी सूखता नहीं ॥
भोग में उलझी बुद्धि नरक का द्वार है और .....
प्रभु में स्थिर बुद्धि परम गति का मार्ग ॥ .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... ....


कितनें लोग हैं

[क] प्रभु श्री राम के बचनों को कितनें लोग धारण किये हैं

[ख] प्रभु श्री कृष्ण के गीता - ज्ञान से कितनें प्रभावित हैं , और गीता को जीने भी लगे है ।

[ग] माँ सीता की आकाश में गूंजती गुहार को कितनें लोग सुनें

[घ ] युद्ध में प्रभु राम जी के साथ कितनें मानुष थे

[च ] युशु जब शूली पर लटक रहे थे तो कितनें लोगों के आँखें भर आई थी

पांच सोचनें के सूत्र हैं , जब भी वक्त मिले सोचना ॥

===== जय हो =====

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