¤¤¤¤ चार पुरुषार्थो मे पहले धर्म और अन्त मे मोक्ष । बीच मे अर्थ और काम । इसका भाव है कि अर्थ और काम को धर्म और मोक्ष के अनुसार प्राप्त करना है ।
¤¤¤¤ धर्म और मोक्ष मुख्य है अर्थ और काम गौण । धर्म के विपरीत कोई भी पुरुषार्थ सिद्ध नही होता ।
¤¤¤¤ धर्मानुसार अर्थ और काम की प्राप्ति करनी है ।
धन नही धर्म मुख्य है । मानव जीवन मेँ धर्म ही प्रधान है । धन से सुख नहीँ मिलता । सुख मिलता है अच्छेसंस्कारो से , संयम और सदाचार से । प्रभु भक्ति औरत्याग से सुख मिलता है । धर्म से धन कभी भी श्रेष्ठ नहीँ हो सकता । धर्म इस लोक मे और परलोक मे सुख देता है । मरने के बाद धन नहीँ धर्म ही साथ जाता है । अतः धन की अपेक्षा धर्म श्रेष्ठ है । जब से लोग अर्थ को महत्व देने लगे हैँ तब से जीवन बिगड़ गया है । ¤¤¤¤ श्रीशंकराचार्य जी ने कहा है
" अर्थ अनर्थ भावय नित्यम्"
अर्थ को धर्मानुकूल रखना चाहिए । ¤¤¤¤
¤¤¤¤ जो अर्थ धर्मानुकूलनहीँ होता वह अनर्थ होता है। देश को सम्पत्ति की जितनी जरुरत है , उससे अधिक अच्छे संस्कारो की जरुरत है। जीवन मे धर्म को सबसे पहले स्थान देना चाहिए । जबकामसुख और अर्थ गौण बनता हैतभी जीवन मेँ दिव्यता आती है । दिव्यता का अर्थ है देवत्व ।
¤¤¤¤ धर्म की गति सूक्ष्म है । धर्म भी अनेको बार अधर्म बनजाता है । सद्भावना के अभावमेँ किया गया धर्म सफल नहीँहोता । सत् का अर्थ है ईश्वर । ईश्वर का भाव जो मन मेँ प्रत्यक्ष सिद्ध करे उसी का धर्म सफल होता है ।
मनुष्यो के शत्रु बाहर नही अपितु मन के अन्दर ही है । काम क्रोध लोभ मोह मद मत्सरआदि शत्रु ही तो है जो हमारे मन मे बसे है इनको मार देने से बाहरी जगत मे कोई भी शत्रु नही रहेगा ।
धर्म क्रिया बिना सदभाव के सफल नहीँ होती । जगत के किसी भी जीव के प्रति कुभावनही रखना चाहिए ।
सभी क्षेत्रो मेँ क्षेत्रज्ञरुप मे परमात्माही बसे हुए हैँ । इसलिए किसी भी जीव के प्रति कुभाव रखना ईश्वर के प्रति कुभाव रखने के बराबर है । शास्त्रो मे कहा गया है जीवही नही जड़ पदार्थो के प्रतिभी कुभाव नही रखना चाहिए। " सुहृदः सर्वभूतानाम्" कहा गया है न कि ¤¤¤¤
"सुहृदः सर्वजीवानाम" ।
जड़ पदार्थो के साथ भी प्रेमकरना है । सबमे सदभाव रखना है अर्थात् जड़ पदार्थो के प्रति भी प्रेम रखना है ।।
Sunday, 3 January 2016
धर्म से मोक्ष तक की यात्रा करनी है , अर्थ काम गौण है
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