भक्ति सूत्र 2
“अथातो भक्ति व्याख्यास्याम:। “
अब भक्ति की व्याख्या! क्यों, “अब “ “अथातो…!
हो चुकी बात काम की बहुत। हो चुकी चर्चा प्रेम की बहुत। अथातो भक्ति… अब भक्ति की बात हो। जी लिए बहुत। देख लिए शरीर के भी खेल। देख लिए मन के भी जाल। गुजर चुके उन सब पड़ावों से। अब भक्ति की थोड़ी बात हो।
“अब “! अचानक शुरू होता है शास्त्र!
सिर्फ भारत में ऐसे शास्त्र हैं जो “अथातो “ ये शुरू होते हैं, दुनिया की किसी भाषा में ऐसे शास्त्र नहीं हैं। क्योंकि यह तो बड़ा आधुरा मालूम पड़ता है।
कहीं “अब “ से कोई शास्त्र शुरू होता है! यह तो ऐसा लगता है जैसे इसके पहले कोई बात चल रही थी, कोई क था आगे चल रही थी जो छूट गयी है, कोई बीच का अध्याय है, प्रारंभ का नहीं।
पश्चिम के व्याख्याकार जब पहली दफ़ा ब्रह्मसूत्र से परिचित हुए—वह भी ऐसे ही शु रू होता है :”अथातो ब्रह्म जिज्ञासा, “ अब ब्रह्म की जिज्ञासा—तो उन्होंने कहा कि इसके पहले कोई किताब थी जो खो गयी है। निश्चित ही, क्योंकि यह तो मध्य से शुरूआत हो रही है।
नहीं, कोई किताब खो नहीं गयी है, यह शुरु आत ही है। यह जीवन की किताब का आखिरी अध्याय है। शास्त्र शुरू ही हो रहा है। , मगर जीवन की किताब का आखिरी अध्याय है। यह उनके लिए नहीं है जो अभी शरीर की वासना में पड़े हों। वे इसे न समझ पाएंगे अभी देर है। अभी फल पकेगा। अभी उनके गिरने का समय नहीं आया। यह उनके लिए नहीं है जो अभी प्रेम की कविता में डूबे हैं और उसको ही जिन्होंने आखिरी समझा है। उन दो को छोड़ने के लिए “अथातो “।
तो, शुरू में ही शास्त्र कह देता है कि कौन है अधिकारी। यह अधिकारी की व्याख्या है “अथातो “। यह कहता है कि अगर चुक गये हो कामवासना से, भर गया हो मन—तो, अन्य था अभी थोड़ी देर और भटको, क्योंकि भटके बिना कोई अनु भव नहीं है। अगर अभी प्रेम में रस आता हो तो क्षमा करो, अभी इस मंदिर में प्रवेश न हो सकेगा। अभी तुम किसी और ही प्रतिमा के पुजारी होने अभी परमात्मा की प्यास नहीं जगी। अभी तुम या तो बीज हो या वृक्ष हो, अभी फूल होने का समय नहीं आया।
यह, जीवन की पाठशाला में जिनका आखिरी अध्याय करीब आ गया, इसका यह मतलब नहीं है कि यह बूढों के लिए है। जैसे पश्चिम के लोगों ने गलत समझा। उन्होंने समझा कि यह तो बूढों के लिए है।
नहीं, प्रौढ़ के लिए है, बूढों के लिए नहीं है। प्रौढ़ कोई कभी भी हो सकता है। एक छोटा बच्चा प्रौढ़ हो सकता है। प्रगाढ़ बुद्धिमत्ता चाहिए! और नहीं तो बूढे भी बचकाने रह जाते हैं। कोई बूढे होने से थोड़े ही पक जाता है। धूप में पक जाने से बाल कोई वृद्ध नहीं हो जाता। बूढे के मन में भी वही कामनाएं चलती रहती हैं, वही वासनाएं चलती रहती हैं। तो उसके लिए भी नहीं हैं यह शास्त्र।
फिर कभी- कभी कोई जवान भी भर- जवानी में जाग जाता है, अभी जब कि सोने के दिन थे तब जाग जाता है। क भी कोई छोटा बच्चा भी अचानक बीज से छलांग लेता है और फूल हो जाता है। कोई शंकराचार्य छोटी उम्र में, बड़ी छोटी उम्र में…। उम्र का कोई सवाल नहीं है, बो ध का सवाल है।
“अथातो “… अब भक्ति की व्याख्या करते हैं। व्याख्या करते हैं, परि भाषा नहीं। परि भाषा हो नहीं सकती। कुछ चीजें हैं जिनका वर्णन हो सकता है, व्याख्या हो सकती है, परिभाषा नहीं हो सकती। जैसे कि तुमने कोई स्वाद पाया और तुम किसी दूसरे को समझाने लगे जिसके जीवन में अभी वैसा स्वाद नहीं आया नहीं, लेकिन स्वाद को समझने की उत्सुकता आयी है, रस जगा है, जिज्ञासा बनी है—तुम क्या करोगे , तुम वर्णन करोगे, तुम्हें जो स्वाद मिला है उसका तुम वर्णन करोगे, कैसा मिला! तुम कुछ प्रतीक चुनोगे, जिससे, जिससे तुम बात कर रहे हो, उसकी भाषा में कुछ संकेत दिये जा सकें, उसके अनु भव से तुम अपना अनु भव जोड़ने की कोशिश करोगे।
व्याख्या का अर्थ होता है : तुम्हें जिन्हें अनुभव नहीं है, उसने अपने अनुभव को जोड़ने की चेष्टा, जो तैयार तो हैं मंदिर में प्रवेश के, लेकिन अभी मंदिर में प्रवेश नहीं हुआ है, उन्हें मंदिर की खबर देनी है, मंदिर के भीतर क्या घट रहा है, मंदिर के भीतर कैसा अनु भव हुआ है, थोड़ा-सा स्वाद उनके लिए लाना है।
क्या करेंगे ,परिभाषा करेंगे व्याख्या करेंगे। परि भाषा नहीं हो सकती। परि भाषा तो उनके बीच हो सकती है जो दानों ही जानेवाले हों। परि भाषा संक्षित होती है। परि भाषा तो एक- दो वचनों में, वाक्यों में पूरी हो जाती है। लेकिन व्याख्या थोड़ी लंबी होती है। और व्याख्या से सिर्फ हम दृष्य देते हैं, झलक देते हैं। वह बिलकुल ठीक नहीं होती व्याख्या, क्योंकि ठीक हो नहीं सकती, थोड़ी- थोड़ी ठीक होती है, थोड़ी- थोड़ी गलत होती है। क्योंकि जानी जब अज्ञानी से बात करता है तो अज्ञानी की भाषा में करता है। परि भाषा तो बिलकुल ठीक होती है, व्याख्या बिलकुल ठीक नहीं होती—हो नहीं सकतीं।
जब बुद्ध बोलेंगे उनसे जिनके जीवन में बुद्धत्व नहीं है, तो अगर बुद्ध अपनी ही भाषा का उपयोग करें तो परिभाषा होगी; अगर बुद्ध उनकी भाषा का उपयोग करें जिनसे बोल रहे हैं, तो व्याख्या होगी। इसलिए सूत्र पहले ही कह देता है: “अथातो भक्ति व्याख्या “अब हम भक्ति की व्याख्या करते हैं। क्रमश .......
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