Wednesday, 13 January 2016

रहस्य भाव 77

चार पुरुषार्थ - धर्म,अर्थ,काम एवं मोक्ष ।।
ये पुरुषार्थ प्रायः मानवोँ के लिए साध्य और साधन दोनोँ हैँ । साधन रुप से ये मानव के अभ्युत्थान के कारक होते है। साध्य रुपसे अपने आप मे आनन्दप्रद हैँ । पुरुषार्थो मेँ धर्म की सर्वोत्तम महिमा है । वही धर्म है जो केवल व्यक्ति को ही नहीँ , अपितु समष्टि को धारण करने हेतु उनके अभ्युदय के लिए सभीप्राणधारियोँको , सभी भूतोँ को और सभी शक्तियोँ को संचारित करता है । धर्मानुकूल अर्थ का उपार्जन या कामवृत्तियोँ का स्वीकरण गृहस्थोँ के लिएपुरुषार्थो मे स्थान पाने योग्य है । धर्म, अर्थ,और काम तीनोँ ही मोक्ष प्राप्ति मेँ बाधक न होँ यहविचार करते हुए ही उनका सेवन करना उचित है ।
जितना सुख काम या अर्थ मेँ होता है , उससे सौ गुना अधिकसुख या आनन्द आध्यात्मिक वृत्ति मेँ होता है । उस आध्यात्मिक वृत्ति की उपेक्षा करके मानव जीवन भर प्रमाद के वशीभूत होकर गृहस्थाश्रम मे रहकर थोड़ी प्राप्ति के लिए बहुत कुछ खो बैठता है ।।
सत्यं च धर्म च पराक्रमं च भूतानुकम्पा प्रियवादिता च।
द्विजातिदेवातिथिपूजनं च पन्थानमाहुस्त्रिदिवस्य सन्तः ।।
सत्य,धर्म,पराक्रम,सभी प्राणियोँ के प्रति सहानुभूति,प्रियभाषण , ब्राह्मणो,अतिथियोँ एवं देवताओँ का पूजन इनको सन्तोँ नेँ स्वर्ग का सर्वोत्तम साधन बताया है

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