तत्व ज्ञान की सबसे पहली सीढ़ी है इस बात का चिंतन करना "मैं नित्य चेतन आत्मा हूँ। शरीर नहीं हूँ"। आपने अपने को देह मान लिया है। बस यहीं से सारी गड़बड़ शुरू होती है। जैसे गणित में यदि पहले कदम पे ही गलती हो जाये तो फिर आगे गलती होती ही जाती है। इसी प्रकार स्वयं को शरीर मान लेने से हम गलत दिशा में चलते जाते हैं।अत: सदा सावधान रहो एवं नित्य अभ्यास करो। हम शरीर नहीं आत्मा है ।
जब अनन्त जीवों को वे अपना चुके हैं फिर शंका कैसी? फिर मेरी बात का भी तो विश्वास करना चाहिये। सच कह रहा हूँ कि बिलकुल तुम्हारे पास खड़े होकर मुस्कुराते हुए तुम्हारे प्यार को सदा देखते रहते हैं। बताओ ये जीव कितना बड़ा भाग्यवान है जिसको श्याम सुंदर सदा देखे। क्या यह जानकर किसी का हृदय बिना बलिहार जाये मानेगा। तुमतो सदा से उनके ही हो,केवल उनको अपना मान लो। बस हो गया सब काम। सदा ध्यान रखो कि वे सदा मेरे संकल्पों को देख रहे हैं। बस फिर न लापरवाही ही आयेगी न विस्मरण ही होगा। मैं तो सदा तुम्हारी हूँ ।
टाइम बरबाद मत करो । जितना समय पेट भरने के लिए जरुरी है , उतना समय संसार को दो बाकी टाइम का उपयोग करो । भगवद् विषय में लगाओ तो बहुत जल्दी आगे बढ़ जाओगे अंत: करण की शुद्धि की ओर । और अगर मर गए बीच में तो जो साधना की वो तुमको फिर मनुष्य बना देगी और फिर कोई गुरु मिल जायेगा या तुम्हारा वही पुराना गुरु दूसरा रूप धारण करके आ जायेगा और तुमको आगे बढ़ाएगा। अंधेर नहीं है भगवान के यहाँ की बीच में छोड़ दिया गुरूजी ने । ऐसानहीं होता । वो सदा के लिए हमारा साथ देता है । भगवत्प्राप्ति तक । इसलिए टाइम का उपयोग करो ,साधना करते रहो ।-
ये सब लापरवाही है, मन की गुलामी है । जैसा मन करता है, वैसा करते हैं । अरे ! मन जो कहे वो करोगे तो चौरासी लाख में अनन्त काल तक रहोगे । एक दुश्मन है तुम्हारा बस ! 'मन ; और न शरीर, न आत्मा न इन्द्रियाँ, कोई नहीं ।केवल मन । उसी को भगवान् में लगाना है, उसी पर शासन करना है । उसकी सुनना नहीं है ।--------
No comments:
Post a Comment