न च अन्यदन्ति पापिष्ठं तत्र दौर्बल्यात् --
दुर्बलता से बढ़कर कोई दूसरा पापी नहीँ है , अर्थात् निकृष्ट नहीँ है । इस प्रकार दुर्बलता को सबसे बढ़कर पाप माना जाता है । वस्तुतः संसार मेँ दुर्बल का कोई मित्र नहीँ अपितु पग पग पर शत्रु होते हैँ क्योँकि -
" वनानि दहतः वह्नेः सखा भवति मारुतः ।
स एव दीपनाशाय कृशे कस्यास्ति सौहृदम् ।।"
जो आग जंगल को जलाती है , वायु उसका तो सहयोग करती है , किन्तु वही वायु दीपक की आग को तुरन्त बुझा देती है । दुर्बल का साथ संसार मेँ कौन देता है ।।
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