सत्संग संतो के संगजीवन रसायन:-°°°°°°°°°°°°-> जो मनुष्य इसी जन्म में प्रभु दर्शन प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्षों का कम कर लेना होगा | उसे इस युग की रफ़्तार से बहुत आगे निकलना होगा |जैसे स्वप्न में मान-अपमान, मेरा- तेरा, अच्छा-बुरा दिखता है और जागने के बाद उसकी सत्यता नहींरहती वैसे ही इस जाग्रत जगत में भी अनुभव करना होगा | बस…हो गया हजारों वर्षों का काम पूरा |ज्ञान की यह बात हृदय में ठीक से जमा देनेवाले कोई महापुरुष मिल जायें तो हजारों वर्षों के संस्कार, मेरे-तेरे के भ्रम को दो पल में ही निवृत कर दें और कार्य पूरा हो जाये ।-> यदि तू निज स्वरूप का प्रेमी बन जाये तो आजीविका की चिन्ता, रमणियों, श्रवण-मनन और शत्रुओं का दुखद स्मरणयह सब छूट जाये ।"उदर-चिन्ता प्रिय चर्चाविरही को जैसे खले ।श्री भगवान् में निष्ठा हो तोये सभी सहज टले ।।"-> स्वयं को अन्य लोगों की आँखों से देखना, अपने वास्तविक स्वरूप को न देखकर अपना निरीक्षण अन्य लोगों की दृष्टि से करना, यह जो स्वभाव है वही हमारे सब दुःखों का कारण है । अन्य लोगों की दृष्टि में खूब अच्छा दिखनेकी इच्छा करना- यही हमारा सामाजिक दोष है।-> लोग क्यों दुःखी हैं ? क्योंकि अज्ञान के कारण वे अपने सत्यस्वरूप को भूल गये हैं और अन्य लोग जैसा कहतेहैं वैसा ही अपने को मान बैठते हैं ।यह दुःख तब तक दूर नहीं होगा जब तक मनुष्य आत्म- साक्षात्कार नहीं कर लेगा , अपने प्रभु से प्रेम नहीं कर लेता ।-> शारीरिक, मानसिक, नैतिक व आध्यात्मिक ये सब पीड़ाएँ सत्संग स्वाध्याय करने से तुरंत दूर होती हैं और…कोईआत्मनिष्ठ महापुरुष का संग मिल जाये तो ये सब पीडाएं सहज दूर हो जाती हैं।-> अपने अन्दर के परमेश्वर को प्रसन्न करने का प्रयास करो । जनता एवं बहुमति को आप किसी प्रकार से संतुष्ट नहीं कर सकते ।जब आपके ठाकुर आपसे प्रसन्न होंगे तो जनता आपसे अवश्य संतुष्ट होगी |-> सब वस्तुओं में कृष्ण या राम दर्शन करने में यदि आप सफल न हो सको तो जिनको आप सबसे अधिक प्रेम करते हों ऐसे, कम-से-कम एक व्यक्ति मेंठाकुर जी का दर्शन करने का प्रयास करो ।ऐसे किसी तत्वज्ञानी महापुरुष की शरण पा लो जिनमें ब्रह्मानंद छलकता हो ।उनका दृष्टिपात होते ही आपमें भी भगवत प्रेम का प्रादुर्भाव होने की सम्भावना पनपेगी ।जैसे एक्स-रे मशीन की किरण कपड़े, चमड़ी, मांस को चीरकर हड्डियों का फोटो खींच लाती है, वैसे ही ज्ञानी कीदृष्टि आपके चित्त में रहने वाली देहाध्यास की परतें चीरकर आपमें ईश्वर को निहारती है ।उनकी दृष्टि से चीरी हुई परतों को चीरना अपके लिये भी सरल हो जायेगा । आप भी स्वयं में ईश्वर को देख सकेंगें ।अतः अपने चित्त पर प्रेमी संत महापुरुष की दृष्टि पड़ने दो ।-> जैसे मछलियाँ जलनिधि में रहती हैं, पक्षी वायुमंडल में ही रहते हैं वैसे आप भी करुणा के भण्डार अनंत सोन्दर्य के सागर अपने ठाकुर जी के प्रेमानंद में ही रहो,प्रेमानंद में ही चलो, प्रेमानंद में विचरो, प्रेमानंद में ही अपना अस्तित्व रखो । फिर देखो खाने-पीने का मजा, घूमने-फिरने का मजा, जीने-मरने का मजा ।।। आनंद कंद भगवान् की जय ।।
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