जो ईश्वर को सर्वत्र विराजमान समझता है, उसके जीवन में दिव्यता आती है.! सब मे ईश्वर को देखना चाहिए -"सियाराम मय सब जग जानी ".! प्रथम मातृदेवो भव, फिर पितृदेवो भव, और अन्त मे परस्पर देवो भव.! ईश्वर को पारस्परिक दर्शन करना है.! जब हम एक दूसरे से मिलते है, तो राम -राम कहते है., इसका अर्थ यही है कि मुझमें और तुममे राम निहित है.! प्रत्येक जड़ -चेतन पदार्थ मे ईश्वर का दर्शन करने से पाप पास नहीं आसकेगा.! यदि ईश्वर की सर्वव्यापकता का अनुभव करें तो घर ही वैकुंठ बन जायेगा.! घर मे कोई झगड़ा ही न होने पाये. तो उस घर से पाप का नाम ही मिट जाये.!
सबमे ईश्वर का अनुभूति होने से मन के सभी विकार मिट जायेंगे.!
Monday, 16 November 2015
रहस्य भाव 39
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