Wednesday, 11 November 2015

रहस्य भाव 37

समुद्र मंथन करते करते गौमाता कामधेनु प्राप्त हुई । गौमाता कामधेनु का दान ऋषियो को दिया गया । जो संपत्ति प्रथम मिले , उसका परोपकार मे उपयोग करना चाहिए ।
कामधेनु संतोष का प्रतीक है। संतोष कामधेनु का स्वरुप है। जिसके आंगन मेँ संतोषरुपी गाय है , वह ब्राह्मण ही ब्रह्मनिष्ठ है । असंतोषी मनुष्य पाप करता है । ब्राह्मण का जीवन अति सात्विक होना चाहिए ।
फिर उच्चैःश्रवा घोड़ा प्राप्त हुआ । इसे देखकर दैत्योँ का मन ललचाया तो उन्हेँ दे दिया गया ।
श्रव शब्द का अर्थ है कीर्ति । उच्चैःश्रवा कीर्ति का प्रतीक है। मन को जो पर्वत सा स्थिर कर पायेगा , उसे जगत मेँ कीर्ति मिलेगी और लक्ष्मी भी । जिसका मन कीर्ति मेँ फँसता है, उसे अमृत नहीँ मिल पाता। साधन के आरम्भ मेँ कीर्ति मिलती है । यदि मन इसी मेँ फँस गया तो भगवान नहीँ मिलेँगे । जिसे मान अधिक मिलता है , उनके पुण्योँ का क्षय होता है । जिस जीव को मान का मोह नहीँ है और जो दीनता से प्रभू की प्रार्थना करता है उस जीव को ईश्वर अपने जैसा बनाते है ।
विष्णुसहस्रनामावति मे भगवान को "अमानी मानदो " कहा गया है । भगवान स्वयं अमानी हैँ , किन्तु जीवोँ को मान देते हैँ ।
जिसका मन उच्चैःश्रवा अर्थात् कीर्ति के मोह मेँ फँस गया है , उसे अमृत नहीँ मिलता । दैत्योँ ने उच्चैःश्रवा को ले लिया था अतः उन्हेँ अमृत नहीँ मिला । बिना कसौटी के परमात्मा कृपा नहीँ करते । जो कीर्ति और प्रसिद्धि मेँ फँसता है उसे अमृत नहीँ मिलता ।।

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