Saturday, 28 November 2015

रहस्य भाव 53

अंशांशोऽशस्तथाऽऽवे
शःकला पूर्णः प्रकथ्यते ।
व्यासाद्यैश्च
स्मृतःषष्ठःपरिप­
र्णतमःस्वयं।।ू
अंशांशस्तु
मरीच्यादिरंशा ब्रह्मदयस्तथा ।
कलाः कपिलकूर्माद्या आवेशा भार्गवादयः।।
पूर्णो नृसिँहोँ रामश्च
श्वेतद्वीपाधिपो हरिः।
वैकुण्ठोऽपि तथा यज्ञो नरनारायणः स्मृतः।।
परिपूर्णतमः साक्षाच्छ्रीकृष­
णो् भगवान् स्वयं ।
असंख्यब्रह्माण्डपतिर्गोलोके
धाम्नि राजते ।।
कार्याधिकारं
कुर्वन्तः सदंशास्ते
प्रकीर्तिताः।
तत्कार्यभारं
कुर्वन्तस्तेऽशा­
शां विदिताः प्रभोः ।।
--> व्यासादि मुनियोँ ने
अंशांश,अंश,आवेश, कला,पूर्ण
और परिपूर्णतम ये
छः प्रकार के अवतार
बताये हैँ ।
मरीचि आदि अंशांशवतार ,
ब्रह्मा आदि अंशावतार,
कपिल एवं कूर्म
प्रभृति कलावतार,परशुराम
आवेशावतार,नृसिंह,
राम,श्वेतद्वीपा­
धिपति हरि,वैकुण्ठ,यज्ञ,और
नरनारायण पूर्णावतार
हैँ एवं साक्षात् भगवान
श्रीकृष्ण परिपूर्णतम
अवतार हैँ । असंख्य
ब्रह्माण्डो के अधिपति वे
प्रभु गोलोकधाम मेँ
विराजते हैँ । जो भगवान
के दिये
सृष्टि आदि कार्यमात्र के
अधिकार का पालन करते
हैँ , वे ब्रह्मा आदि सत्
(सत्स्वरुप भगवान ) के अंश
हैँ । जो उन अंशो के
कार्यभार मेँ हाथ बँटाते
है,वे "अंशांशावतार" के
नाम से विख्यात हैँ ।
भगवान विष्णु स्वयं जिनके
अन्तःकरण मेँ आविष्ट हो ,
अभीष्ट कार्य करने के
बाद फिर अलग हो जाते
है, "आवेशावतार" कहे जाते
है । जो प्रत्येग युग मेँ
प्रकट हो , युगधर्म
को जानकर
उसकी स्थापना करके
पुनः अन्तर्धान हो जाते
हैँ भगवान के उन
अवतारोँ को "कलावतार"
कहा जाता है । जहाँ चार
व्यूह प्रकट हो -जैसे
राम,भरत,लक्ष्मण,
शत्रुघ्न,एवं
वासुदेव,संकर्षण ,
द्धप्रद्युम्न,अनिरु
तथा जहाँ नौ रसोँ की अभिव्यक्ति देखी जाती हो ,
जहाँ बल पराक्रम
की भी पराकाष्ठा दृष्टिगोचर
होती हो भगवान के उस
अवतार
को "पूर्णावतार"कहा
गया है । जिसके अपने तेज मेँ
अन्य सम्पूर्ण तेज विलीन
हो जाते हैँ , भगवान के उस
अवतार को श्रेष्ठ
विद्वान पुरुष साक्षात्
"परिपूर्णतम" बताते हैँ
जिस अवतार मेँ पूर्ण
का पूर्ण लक्षण
दृष्टिगोचर होता है और
मनुष्य जिसे पृथक पृथक
भाव के अनुसार अपने परम
प्रिय रुप मेँ देखते है ,
वही साक्षात
परिपूर्णतम अवतार है[इन
सभी लक्षणोँ से सम्पन्न
स्वयं परिपूर्णतम भगवान
श्रीकृष्ण ही हैँ ,
क्योँकि श्रीकृष्ण ने एक
कार्य के उद्देश्य से
अवतार लेकर अन्यान्य
करोड़ो कार्यो का सम्पादन
किया है ।
>> जो पूर्ण पुराण ,
पुरुषोत्तमोत्तम एवं
परात्पर पुरुष परमेश्वर
है , उन साक्षात
सदानन्दमय , कृपानिधि,
गुणोँ के आकर भगवान
श्रीकृष्ण की शरण ग्रहण
करता हूँ ।
(गर्ग संहिता गोलोकखण्ड
अध्याय एक )

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