Tuesday, 17 November 2015

रहस्य भाव 41

-> जय श्रीकृष्ण .<-
यशोदा ->
यशः ददाति इति यशोदा ।
जो दूसरोँ को यश दे वह
यशोदा है ।
-... जब सभी को यश देकर
अपयश अपने पास रखोगे
तो कृष्ण प्रसन्न होँगे ।
जीव ऐसा दुष्ट है कि यश
अपने पास रखता है और
अपयश दूसरोँ के सिर मढ
देता है ।
नन्द ->
नंदयति सर्वजनान्
सः नंदः ।
जो सभी को आनन्द
देता है , वही नन्द है ।
..... विचार , वाणी ,
सदाचार , से जो अन्य
को आनन्द देता है , उसी के
घर भगवान पधारते हैँ ।
जो आनन्द देता है ,
उसी को परमानन्द
मिलता है ।
सभी का आदर करो ।
आदरदान उत्तमोत्तम
दान है ।सभी जीव
को शिव-स्वरुप मानकर
सभी का आदर करो ।
ज्ञानी का लक्षण है
कि उसके व्यवहार से
किसी को अशान्ति और
उद्वेग न होने पाये ।

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