शिवजी ने नारायण के मोहिनी अवतार को देखने इच्छा प्रकट की ।
प्रभू ने कहा - आपने तो कामदहन किया है , फिर भी ऐसा मोह क्यो ?
शिवजी मैँने आपके सभी जन्म देखे है अतः इस मोहिनी अवतार को भी देखने की इच्छा है । शिवजी तो अनादि और अनंत है अतः ऐसा कहते हैँ ।
प्रभू ने लीला रची एक सुन्दर उद्यान और उसमेँ पुष्पगुच्छ खेलती हुई सौन्दर्यवती युवती। शिवजी ने देखा तो पार्वती की उपस्थिति भी भूल गये । भगवान की माया से शंकर मोहित हो गये ।
जिसके सिर पर ज्ञानगंगा है जिसका वाहन ज्ञान है , बुद्धि (पार्वती) जिसकी दासी है क्या उसे काम प्रभावित कर सकता है ?
किन्तु शिवजी यह बताना चाहते हैँ कि भगवान की माया को पार करना बड़ा कठिन है। <दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया ।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ।।> (गीता. अ. 7/14)
मेरी इस माया को पार करना बड़ा कठिन है , किन्तु जो मेरी शरण मेँ आता है , वह अनायास ही माया को पार कर जाता है ।
शिवजी देहभान भूल गये दर्शन करने वाला देहभान भूल जाता है । शिवजी सोच रहे हैँ कि जब दर्शन से ही इतना आनन्द मिलता है , तो मिलन कितना अधिक आनंदमयी होगा।
आनंद अद्वैत मेँ ही है शिवजी मिलनातुर होकर दौड़ पड़े । जब प्रेम से आलिंगन करना चाहा तो वहाँ चतुर्भुज नारायण प्रकट हुए । हरि और हर का मिलन हुआ । हरि और हर वैसे तो एक ही हैँ ।
शिवजी कैलाश पर ऋषियो को उपदेश करते हैँ > मेरे श्रीकृष्ण की माया सभी को नचाती है । मन का कभी भरोसा न करो । यह माया कब पतन के गर्त मेँ फेँक देगी इसका कोई पता नहीँ है । मैँ जितेन्द्रिय हूँ ऐसा गर्व कभी मत करो । मन मेँ सूक्ष्मता से छिपे हुए विषय अवसर पाते ही प्रकट हो जाते हैँ । माया के पर्दे को हटाने के लिए मन को कृष्णमय बना लेना चाहिए ।
बड़े बड़े ऋषि मुनि भी भटक गये थे , फिर आज तो कलियुग है । कलियुगी मनुष्य काम का कीड़ा है । इसलिए उसे और भी अधिक सावधान रहना चाहिए ।
इस लीला द्वारा शिवजी मनुष्य को समझाते हैँ कि हरिस्मरण और हरिकीर्तन ही मनुष्य को मोहिनी के मोह से बचा सकता है ।।
जय श्रीहरिः
Sunday, 8 November 2015
रहस्य भाव 35
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