Wednesday, 25 November 2015

रहस्य भाव 50

एक बार पृथ्वी ने अन्नो को अपने गर्भ मेँ छिपा लिया तब  अकाल पड़ जाने से प्रजा व्याकुल होकर महराजा पृथु से निवेदन तब पृथु क्रोधित होकर धनुष वाण चढ़ाकर पृथ्वी को दण्डित करने हेतु निकल पड़े तब पृथ्वी गाय का रुप धारण कर भागने लगी । जब भागते भागते थक गयी तब रुककर महाराज पृथु से प्रार्थना करते हुए ,कहा माया द्वारा अनेक रुपधारी आप परम पुरुष को नमस्कार है । ब्रह्माजी ने जीवो की स्थिति हेतु मेरी रचना की है और आप मुझे मारने को तत्पर हैँ । अब मै आपकी शरणागत हूँ मेरी रक्षा करेँ ।
हे प्रभू इस लोक और परलोक मेँ कल्याण प्राप्ति के लिए तत्वदर्शियोँ ने उपाय निश्चित कर उनका प्रयोग भी किया । उन उपायो द्वारा वर्तमान मेँ भी मनुष्य सरलतापूर्वक उस फल को प्राप्त कर सकते हैँ ।
यदि उन उपायो का निरादार कर अपने नियम चलाये जायँ। तो उनमेँ सफलता प्राप्त नहीँ हो सकती ।
हे प्रभो ! मैँने जब ब्रह्मा द्वारा रचित औषधियो को व्रतहीन दुष्टोँ द्वारा उपभोग होते देखा और लोकपालोँ ने मेरा पालन न किया तो मैने सब औषधियोँ को यज्ञ के लिए निगल लिया । सभी अन्नादि भीतर रहते हुए क्षीण हो गये है । यदि आप चाहेँ तो योगबल से उन्हे निकाल लेँ ।
आप योग्य वत्स और उचित दोहनपात्र एवं दुहने वाले की व्यवस्था करके मेरा दोहन करेँ ।
तब महाराज पृथु ने मनु को बछड़ा बनाकर अपने हाथ मे सब अन्न का दोहन कराया । ऋषियोँ ने वृहस्पति को वत्स बनाकर स्वर्ण पात्र मेँ अमृत , इन्द्रिय शक्ति , मन शक्ति , शरीर शक्ति रुपी दूध दुहा । दैत्यो ने प्रह्लाद को वत्स बनाकर लौह पात्र मेँ मदिरा एवं आसव रुपी दूध निकाला । गन्धर्व और अप्सराओ ने कमल पात्र मे विश्वासु को बछड़ा बनाकर सुरीली वाणी और गानविद्या रुपी दूध दुहा । फिर श्राद्धदेव ने अर्यमा को बछड़ा बनाकर कच्चे मृतिका पात्र मेँ कव्य रुपी क्षीर , सिद्धो ने कपिल को बछड़ा बनाकर आकाश रुपी पात्र मेँ सिद्धिरुपी दुग्ध का तथा विद्याधरोँ ने विद्या का दोहन किया । मायावियो ने मय को बछड़ा बनाकर मायामय विद्याओ का  और यक्ष पिशाच आदि ने रुधिर रुपी मद का दोहन किया । सर्प , पशु , सिँह , पक्षी , कीट , वृक्ष , पर्वत आदि ने भी अपने प्रमुखो को बछड़ा बनाकर अपने अपने स्वाभावानुसार दूध दुहा ।
महाराज पृथु ने पृथ्वी को अपनी पुत्री बनाकर धनुष के अग्रभाग से समतल किया और मनुष्योँ के निवास हेतु नगर पुर ग्राम आदि का निर्माण किया ।
तभी से धरती का एक नाम पृथ्वी भी हुआ ।।

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