लक्ष्मीर्न या याचक दुःखहारिणी
विद्या न याऽप्यच्युतभक्ति कारिणी ।
पुत्रो न यः पण्डित मण्डाग्रणी
सा नैव,सा नैव,स नैव नैव ।।
किसी व्यक्ति द्वारा कमाया धन (लक्ष्मी) क्या है , जो दीन हीन भिखमंगो के दुःख मिटाने मेँ सहायक न बने । उसी प्रकार अर्जित की गयी विद्या (ज्ञान) क्या है जो भगवान विष्णु की भक्ति की प्रेरणा नहीँ देती और इस भक्ति कार्य मेँ लीन नहीँ कर देती । वह पुत्र क्या पुत्र है जो पण्डितोँ (ज्ञानियोँ) की मण्डल (समूह) मेँ ज्ञान की दृष्टि से अग्रगण्य नहीँ है । यही कहा जा सकता है कि वह लक्ष्मी , लक्ष्मी नहीँ है , वह विद्या , विद्या नहीँ है , वह पुत्र , पुत्र नहीँ है ।।
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