Wednesday, 25 November 2015

रहस्य भाव 51

प्राचीन समय मेँ हिरण्याक्ष बंश मेँ दुर्गम नाम का एक दैत्य हुआ , जो रुरु का पुत्र था ।उसने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके वेदो को माँग लिया जिससे ब्राह्मणोँ को वेद विस्मृत हो गये ,अतः स्नान , संध्या नित्यहोम श्राद्ध यज्ञ , जप आदि वैदिक क्रियाएँ नष्ट हो गयीँ । यज्ञ भाग न पाने से देवता कमजोर हो गये और दुर्गम से भयभीत होकर पर्वत की कन्दराओ मे छिप गये ,दैत्य ने अमरावती पर अधिकार कर लिया ।
हवन न होने से पृथ्वी पर एक बूँद भी जल वृष्टि नहीँ हुए जिससे कुएँ , बावली तालाब आदि सभी सूख गये , सौ वर्षो तक ऐसी अनाबृष्टि होती रही । तब सबके मिलकर भगवती की प्रार्थना करने पर जगत् की रक्षा मेँ तत्पर रहने वाली करुणार्द हृदय भगवती अपनी अनन्त आँखो से सहस्रोँ जलधाराएँ गिराने लगीँ । जिससे नौ रात तक  त्रिलोकी पर जलवृष्टि होती रही ।
अतः उनका एक नाम पड़ा "शताक्षी " तथा भक्तोँ की प्राण रक्षा हेतु भगवती ने अनेक प्रकार के शाक एवं फल तथा पशुओँ के लिए नवीन तृण भी प्रदान किया ,जिससे वे शाकम्भरी कहलायीँ ।
"शत शत नेत्रोँ से बरसाया नौ दिनोँ तक अविरल अति जल ।
भूखे जीवोँ के हित दिए अमित तृण अन्न शाक शुचि फल ।।"
>बोलिए शाकम्भरी माता की जय

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