गीता-सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
(श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजकी गीता-दर्पण पुस्तकसे)
प्रश्न—जैसे गीतामें (दसवें अध्यायमें) भगवान्ने अर्जुनसे अपनी विभूतियाँ कही हैं, ऐसे ही श्रीमद्भागवतमें (ग्यारहवें स्कन्धके सोलहवें अध्यायमें) भगवान्ने उद्धवजीसे अपनी विभूतियाँ कही हैं । जब गीता और भागवत—दोनोंमें कही हुई विभूतियोंके वक्ता भगवान् श्रीकृष्ण ही हैं, तो फिर दोनोंमें कही हुई विभूतियोंमें अन्तर क्यों हैं ?
उत्तर—वास्तवमें विभूतियाँ कहनेमें भगवान्का तात्पर्य किसी वस्तु, व्यक्ति आदिका महत्त्व बतानेमें नहीं है, प्रत्युत अपना चिन्तन करानेमें है । अतः गीता और भागवत—दोनों ही जगह कही हुई विभूतियोंमें भगवान्का चिन्तन करना ही मुख्य है । इस दृष्टिसे जहाँ-जहाँ विशेषता दिखायी दे, वहाँ-वहाँ वस्तु, व्यक्ति आदिकी विशेषता न देखकर केवल भगवान्की ही विशेषता देखनी चाहिये और भगवान्की ही तरफ वृत्ति जानी चाहिये । तात्पर्य है कि मन जहाँ-कहीं चला जाय, वहाँ भगवान्का ही चिन्तन होना चाहिये—इसके लिये ही भगवान्ने विभूतियोंका वर्णन किया है (१० । ४१) ।
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