जिस समय विश्वामित्र के पीछे राम लक्ष्मण चल रहे थे उस समय कैसे शोभायमान हो रहे थे .....,
अरुन नयन उर बाहु विशाला। नील जलज तनु श्याम तमाला।।
कटि पट पीत कसे वर भाथा । रुचिर चाप सायक दुहुँ हाथा।।
विश्वामित्र अर्थात सारे विश्व का मित्र ।" विश्वस्य मित्रः सः विश्वामित्रः ।।" विश्व जिसका मित्र है वही विश्वामित्र है । जगत् का मित्र है जीव । मनुष्य अर्थात् जीव मित्र बनता हो तो शब्द ब्रह्म उसके पीछे पीछे आता है और उसके पीछे पीछे परब्रह्म भी आता है ।
जीव भी यदि जगत् के मित्र बनेँ तो राम लक्ष्मण पीछे पीछे आयेँगे । राम ही परब्रह्म हैँ , शब्द ब्रह्म के बिना परब्रह्म प्रकाट नहीँ होता ।।
विश्वामित्र ने राम लक्ष्मण को बला और अतिबला विद्या दी थी सो उन्हेँ भूख प्यास नहीँ लगती थी ।
विश्वामित्र की यज्ञ रक्षा के लिए राम लक्ष्मण धनुष वाण लिए खडे रहते है ।
द्वारिका मे द्वारिका नाथ खड़े है । डाकोर मेँ रणछोड़रायजी खड़े है ।।
श्रीनाथजी मे गोवर्धननाथ खड़े हैँ । पंढरपुर मेँ विट्ठलनाथ जी खड़े है ।।
भगवान कहते हैँ - जब जीव मेरे दर्शन हेतु आता है तो मैँ खड़ा होकर उसे दर्शन देता हूँ
मैँ जीव से मिलने को आतुर हूँ । प्रेम से मुझसे मिलने हेतु जो भी आता है , उससे मिलने को मैँ सदैव आतुर रहता हूँ । अपने भक्तो से मिलने की प्रतीक्षा मे मैँ खड़ा हूँ । मै खड़ा खड़े भक्तो की प्रतीक्षा करता हूँ कि मुझसे विभक्त हुआ जीव मुझसे मिलने के लिए कब आयेगा ?
ईश्वर की दृष्टि तो जीव की ओर अखण्ड रुप से है , किन्तु जीव ही ईश्वर की ओर दृष्टि नहीँ करता है । राम तो जीव को अपनाने के लिए तत्पर हैँ किन्तु यह अभागा जीव ही उनसे मिलने के आतुर नही होता ।।
Tuesday, 3 November 2015
रहस्य भाव 27
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