रुपस्य हर्त्री व्यसनं बलस्य ।
शोकस्य योनिर्निधनं रतीनाम्।।
नाशः स्मृतीनां रिपुरिन्द्रियाणाम् ।
एषा जरा नाम ययैष भग्नः ।।
रुप का नाश करने वाली , बल को शिथिल करने वाली , शोक का उत्पत्ति स्थान , रतिभाव का विनाश करने वाली , स्मरण शक्ति को नष्ट करने वाली , इन्द्रियोँ की क्षमताओँ का शत्रु यह जरा (बुढ़ापा) है जिसने तोड़ डाला है ।।
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