अमीर खुसरो के दोहे ~~~~~~~
खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग।
तन मेरो मन पिया को, दोऊं भए इक रंग।।
खुसरो दरिया प्रेम का, उलटी वा की धार।
जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार।।
खुसरो मौला के रूठते, पीर के सरने जाय।
कह खुसरो पीर के रूठते, मौला नहीं होत सहाय।
उज्ज्वल बरन अधीन तन, एक चित्त दो ध्यान।
देखन में तो साध है, पर निपट पाप की खान।।
गोरी सोवे सेज पर, मुख पर डाले केस।
चल खुसरो घर आपने, सांझ भई चहूँ देस।।
खीर पकाई जतन से, चरखा दिया जलाय।
आया कुत्ता खा गया, तू बैठी ढोल बजाय।।
श्याम सेत गोरी लिए, जनमत भई अनीत।
इक पल में फिर जात हैं, जोगी काके मीत।।
अंगना तो परबत भया, देहरी भई बिदेस।
जा बाबुल घर आपने, मैं चली पिया के देस।।
साजन ये मति जानियो, तोहे बिछड़त मोको चैन।
दिया जलत है रात में, और जिया जलत दिन रैन।।
पंखा हो कर मैं डुली, साती तेरा चाव।
मुझ जलती का जनम गयो, तेरे लेखन भाव।
रैन बिना जग दुखी है, और दुखी चन्द्र बिन रैन।
तुम बिन साजन मैं दुखी, और दुखी दरस बिन नैन।।
नदी किनारे मैं खड़ा, सो पानी झिलमिल होय।
पी गोरो मैं सांवरी, अब किस विध मिलना होय।।
संतों की निंदा करे, रखे पर नारी से हेत।
वे नर ऐसे जाएंगे, जैसे रणरेही का खेत।।
खुसरो पाती प्रेम की, बिरला बांचे कोय।
बेद कुरान पोथी पढ़े, प्रेम बिना न होय।।
आ साजन मेरे नैनन में, सो पलक ढांप तोहे दूं।
न मैं देखूं औरन को, न तोहे देखन दूं।।
अपनी छवि बनाय के, मैं तो पी के पास गयी।
जब छवि देखि पीहूं की, सो अपनी भूल गयी।।
खुसरो सरीर सराय है, क्यों सोवे सुख चैन।
कूच नगारा साँस का, बाजत है दिन रैन।।
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