Tuesday, 17 May 2016

श्रीकृष्ण को जानते हो , फिर

श्री कृष्ण को जानते हो । फिर कोई अन्य वस्तु में आसक्त कैसे हो गया । मानते नहीँ होंगे ।
या नेत्र बन्द हो ।
या सुनाई न आता हो ।
या स्पर्श पर अनुभूति न प्राप्त हो ।
प्रसाद और हरि रस न कि कहीँ जिह्वा रोगी तो नहीँ ।

या आप सिद्ध हो ।
परम् प्रेमी ।
श्रीमोहन से आप अभिन्न है ।
उन्हें ही पाते है , सो अन्यत्र आप
सहज है ।

पहला मार्ग संसारी धारा ,
दूसरा मार्ग प्रेम राधा ।।
अपेक्षा करता हूँ आप दूसरी धारा में हो । अपूर्ण नहीँ हो , उनके रस से निकल नहीँ पाते । डूब चुके हो । हर वस्तु रँग रूप बस वहीँ । अहा ।।।
और अगर श्री कृष्ण को जान और मान भी अन्य से सम्बन्ध है अन्य भाव से तब यह कैसे हुआ ? क्या सच में आपने उन्हें देख लिया या मान लिया । नहीँ असम्भव , मान लिया होता तब वहीँ रहते संसार कहाँ रहता ??   --- सत्यजीत तृषित ।।।

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