आसक्त , अहा ।
आपको वरदान प्राप्त है ।
कागज से धन की प्रतिती हुई आपको , कितना दिव्य गुण ।
बस यथार्थ धन की अनुभूति हो जावें ।
मिट्टी सुंदर लगी , अहा ... तब दिव्य सौंदर्य आपको कैसे निकलने देगा , वास्तविक सौंदर्य सार दर्शन कर लीजिये बस ।
असार में सार निकाल लिए आप , धन्य हो । तब तो सार प्राप्त कर आप दिव्यतम हो जाओंगे ।
आपका मन कितना सुंदर है , बड़ा भोला !! खिलौनों से लग गया तब तो सत्य वस्तु में उलझ निकल ही न सकेगा ।
आप में दोष नहीँ , बस सत चित् आनन्द के दर्शन की भावना कीजिये । वरन् आपको जो आसक्ति प्राप्त है वह वरदान होगी । कागज से इसने महक ली , तब तो पुष्पों को पा यह नाच उठेगी ।
मेरे माधव सा कौन , कोई विकल्प नहीँ । संसार की आसक्ति थिर नहीँ , कल गुड़िया भाती थी , अब पत्नी भी नहीँ सुहाती । सौंदर्य की प्यास अटल है इसे वास्तविक सौंदर्य चाहिये । ---सत्यजीत तृषित ।
Tuesday, 17 May 2016
आसक्त , अहा । आपको वरदान प्राप्त है ।
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